Tuesday, March 21, 2017

रेकी उपचार परिचय

रेकी  एक आध्यात्मिक अभ्यास पद्धति है, जिसका विकास १९२२ में मिकाओ उसुई ने किया था। यह तनाव और उपचार संबंधी एक जापानी विधि है, जो काफी कुछ योग जैसी है। मान्यता अनुसार रेकी का असली उदगम स्थल भारत है। सहस्रों वर्ष पूर्व भारत में स्पर्श चिकित्सा का ज्ञान था। अथर्ववेद में इसके प्रमाण पाए गए हैं, यह विद्या गुरु-शिष्य परंपरा के द्वारा मौखिक रूप में विद्यमान रही। लिखित में यह विद्या न होने से धीरे-धीरे इसका लोप होता चला गया। ढाई हजार वर्ष पहले बुद्ध ने ये विद्या अपने शिष्यों को सिखाई जिससे देशाटन के समय जंगलों में घूमते हुए उन्हें चिकित्सा सुविधा का अभाव न हो और वे अपना उपचार कर सकें। भगवान बुद्ध की ‘कमल सूत्र’ नामक किताब में इसका कुछ वर्णन है।यहाँ से यह भिक्षुओं के साथ तिब्बत और चीन होती हुई जापान तक पहुँची है। जापान में इसे पुनः खोजने का काम जापान के संत डॉक्टर मिकाओ उसुई ने अपने जीवनकाल १८६९-१९२६ में किया था।इसकी विचारधारा अनुसार ऊर्जा जीवित प्राणियों से ही प्रवाहित होती है। रेकी के विशेषज्ञों का मानना है कि अदृश्य ऊर्जा को जीवन ऊर्जा या की कहा जाता है और यह जीवन की प्राण शक्ति होती है। विशेषज्ञ कहते हैं कि ” की ” हमारे आस-पास ही है और उसे मस्तिष्क द्वारा ग्रहण किया जा सकता है।
रेकी शब्द में रे का अर्थ है वैश्विक, अर्थात सर्वव्यापी ,की का अर्थ ऊर्जा, है। विभिन्न लोगों द्वारा किये गये शोध के अनुसार यह निष्कर्ष निकला है कि इस विधि को आध्यात्मिक चेतन अवस्था या अलौकिक ज्ञान भी कहा जा सकता है। इसे सर्व ज्ञान भी कहा जाता है जिसके द्वारा सभी समस्याओं की जड़ में जाकर उनका उपचार खोजा जाता है। समग्र औषधि के तौर पर रेकी को बहुत पसंद किया जाता है। रेकी की मान्यता है कि जब तक कोई प्राणी जीवित है, ‘की’ अर्थात ऊर्जा उसके गिर्द बनी रहती है। जब ‘की’ अर्थात ऊर्जा उसे छोड़ जाती है, तब उस प्राणी की मृत्यु होती है। विचार, भाव और आध्यात्मिक जीवन भी ‘की अर्थात ऊर्जा के माध्यम से उपजते हैं। रेकी एक साधारण विधि है, लेकिन इसे पारंपरिक तौर पर नहीं सिखाया जा सकता। विद्यार्थी इसे रेकी मास्टर से ही सीखता है, इसे आध्यात्म आधारित अभ्यास के तौर पर जाना जाता है। चिन्ता, क्रोध, लोभ, उत्तेजना और तनाव शरीर के अंगों एवं नाड़ियो मे हलचल पैदा करते देते हैं, जिससे रक्त धमनियों मे कई प्रकार के विकार उत्पन्न हो जाते हैं। शारीरिक रोग इन्ही विकृतियों के परिणाम हैं। शारीरिक रोग मानसिक रोगों से प्रभावित होते है। रेकी बीमारी के कारण को जड़ मूल से नष्ट करती हैं, स्वास्थ्य स्तर को उठाती है, बीमारी के लक्षणों को दबाती नहीं हैं।
रेकी के द्वारा मानसिक भावनाओं का संतुलन होता है और शारीरिक तनावबैचेनी व दर्द से छुटकारा मिलता जाता हैं। रेकी गठियादमाकैंसररक्तचापपक्षाघातअल्सरएसिडिटीपथरीबवासीरमधुमेहअनिद्रामोटापागुर्दे के रोगआंखों के रोग स्त्री रोगबाँझपनशक्तिन्यूनता और पागलपन तक दूर करने मे समर्थ है।

इसके द्वारा विशिष्ट आदर्शो के अधीन रहना होता है। संस्कृत शब्द प्राण इसी का पर्यायवाची है। चीन में इसे ची कहा जाता है। रेकी के विशेषज्ञ नकारात्मक  ऊर्जा को समाप्त कर उसे सकारात्मक ऊर्जा में बदलने पर जोर देते हैं। उपचार करते समय रेकी विशेषज्ञ के हाथ गर्म हो जाते हैं। रेकी का इस्तेमाल मार्शल आर्ट़स विशेषज्ञ भी करते हैं। यह विद्या एक या दो दिन के शिविर में सिखाई जाती है, जिसमें लगभग 4-8  घंटे का समय होता है। इस शिविर में रेकी प्रशिक्षक द्वारा व्यक्ति को सुसंगतता (‘एट्यूनमेंट’  या ‘शक्तिपात’) प्रदान की जाती है। इससे व्यक्ति के शरीर में स्थित शक्ति केंद्र जिन्हें चक्र कहते है, पूरी तरह गतिमान हो जाते हैं, जिससे उनमें ‘जीनव शक्ति’ का संचार होने लगता है।रेकी का प्रशिक्षण मास्टर एवं ग्रैंड मास्टर पांच चरणों में देते हैं।
प्रथम डिग्री
द्वितीय डिग्री
तृतीय डिग्री
मास्टर्स रेकी
रेकी का इतिहास
    भारत देश आध्यात्मिक शक्तियों से संपन्ना देश है, हजारों वर्ष पूर्व भारत में स्पर्श चिकित्सा का ज्ञान था। अथर्ववेद में इसके प्रमाण पाए गए हैं, किंतु गुरु-शिष्य परंपरा के कारण यह विद्या मौखिक रूप से ही रही। लिखित में यह विद्या न होने से धीरे-धीरे इस विद्या का लोप होता चला गया। 2500 वर्ष पहले भगवान बुद्ध ने ये विद्या अपने शिष्यों को सिखाई ताकि देशाटन के समय जंगलों में घूमते हुए उन्हें चिकित्सा सुविधा का अभाव न हो और वे अपना उपचार कर सकें। भगवान बुद्ध की ‘कमल सूत्र’ नामक किताब में इसका कुछ वर्णन है।
19वीं शताब्दी में जापान के डॉ. मिकाओ उसुई ने इस विद्या की पुनः खोज की और आज यह विद्या रेकी के रूप में पूरे विश्र्व में फैल गई है। डॉ. मिकाओ उसुई की इस चमत्कारिक खोज ने ‘स्पर्श चिकित्सा’ के रूप में संपूर्ण विश्व को चिकित्सा के क्षेत्र में एक नई दिशा प्रदान की है।
रेकी सीखने के लाभ
1. यह शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक स्तरों को प्रभावित करती है।
2. शरीर की अवरुद्ध ऊर्जा को सुचारुता प्रदान करती है।
3. शरीर में व्याप्त नकारात्मक प्रवाह को दूर करती है।
4. अतीद्रिंय मानसिक शक्तियों को बढ़ाती है।
5. शरीर की रोगों से लड़ने वाली शक्ति को प्रभावी बनाती है।
6. ध्यान लगाने के लिए सहायक होती है।
7. समक्ष एवं परोक्ष उपचार करती है।
8. सजीव एवं निर्जीव सभी का उपचार करती है।
9. रोग का समूल उपचार करती है।
10. पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करती है।
रेकी की पात्रता
कोई भी व्यक्ति रेकी सीख सकता है,यह व्यक्ति के बौद्धिक, शैक्षणिक या आध्यात्मिक स्तर पर निर्भर नहीं है, न ही इसे सीखने के लिए उम्र का बंधन है। इसे सीखने के लिए वर्षों का अभ्यास नहीं चाहिए न ही रेकी उपचारक की व्यक्तिगत स्थिति के कारण उपचार पर कोई प्रभाव पड़ता है। यह क्षमता रेकी प्रशिक्षक के द्वारा उसके प्रशिक्षार्थी में सुसंगतता (एट्यूनमेंट) के माध्यम से उपलब्ध होती है, इसके प्राप्त होते ही व्यक्ति के दोनों हाथों से ऊर्जा का प्रवाह प्रारंभ हो जाता है और इस तरह वह स्वयं का तथा दूसरों का भी उपचार कर सकता है।
रेकी कैसे कार्य करती है?
यह शरीर के रोगग्रस्त भाग की दूषित ऊर्जा को हटाकर उस क्षेत्र को स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करती है। यह व्यक्ति के तरंग स्तर को बढ़ाती है। उसके प्रभा पंडल को स्वच्छ करती है जिसमें नकारात्मक विचार और रोग रहते है। इस क्रिया में यह शरीर के ऊर्जा प्रवाहों को सुचारु करने के साथ-साथ उन्हें बढ़ाती भी है। इस तरह यह रोग का उपचार करती है।
  रेकी अर्थात ऊर्जा – आध्यात्मिक ईश्वरीय स्पर्श चिकित्सा पद्धति जो व्यक्ति के सभी शुभ विचारों को साकार करके चमत्कारिक ढंग से मन को आश्चर्य तथा आनंद से सराबोर कर देती है. परमात्मा की प्रार्थना में बहुत शक्ति है. इसी शक्ति को जापान में रेकी नाम से संबोधित किया जाता है. वर्तमान समय में मनुष्य चौबीसों घंटे तनाव में गुजारता है. तनाव को दूर करने की सबसे सरल विधियों में रेकी का स्थान सर्वोपरि माना गया है. सामान्य रूप से रेकी एक ऐसी स्पर्श चिकित्सा है जिसमें शारीरिक अंगों को छूकर अथवा बगैर छुए विभिन्न रोगों का उपचार सफलतापूर्वक होता है. चिकित्सा की इस विधा में औषधि के रूप में ब्रह्माण्ड में व्याप्त संजीवनी प्राण ऊर्जा का उपयोग किया जाता है, उपचार की प्रक्रिया में ऊर्जा का प्रवाह रेकी मास्टर के हाथों में होकर रोगी के शरीर में (रोगी की ऊर्जा ग्रहण क्षमता के अनुसार) पहुँचता है एवं कुछ ही समय पश्चात् रोगी व्यक्ति पहले तो स्वस्थ और संयमितता का अनुभव करता है और अंत में उसे आनंद की सुखद अनुभूति होने लगती है.
विश्व के सभी देशों में आज भी मान्यता है कि साधु-संतों के आशीर्वचन, उनका सान्निध्य तथा आशीष पाकर मनुष्य को बीमारियों से मुक्ति सहज ही मिल जाती है. डॉक्टर मिकाओ उसुई को भी पूरा विश्व इसीलिए जानता है कि उन्होंने बिना दवा-गोली इंजेक्शन के मात्र स्पर्श एवं संकल्प शक्ति से जटिलतम रोगों का निदान करने के लिए रेकी स्पर्श चिकित्सा से दुनिया को परिचित कराया, हमारे देश में 1980 से रेकी चिकित्सा जारी है. हालांकि इसे शासकीय मान्यता प्राप्त नहीं है फिर भी देश के शहरों एवं महानगरों में इसका अत्यधिक प्रचार-प्रसार है.
रेकी सीखने के लिए कुछ योग्यताएं आवश्यक हैं -
व्यक्ति शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ हो एवं उसका जीवन प्रेम और सद्भावना से भरा हो.
व्यक्ति के मन में यह विश्वास होना चाहिए कि किसी भी रोग अथवा समस्या के समाधान हेतु मानव के पास ईश्वरीय शक्ति सदैव मौजूद होती है.
रेकी सीखने वालों के विचारों में इमानदारी, सकारात्मकता एवं स्पष्टवादिता होना चाहिए. यह विद्या दुष्ट एवं चालाकों के लिए नहीं है.
रेकी उपचारक उपचार करने के पूर्व डॉक्टर उसुई पर ध्यान लगाकर अपने मन में सच्चे दिल से नीचे लिखी अतिरिक्त प्रार्थना करें तो उसके शरीर एवं हाथों में एक विशिष्ट आध्यात्मिक शक्ति आ जाती है. एवं रोगों को दूर करने में सहायता करती है.
प्रभु मेरा मार्ग दर्शन करें एवं मुझे उपचारक शक्ति प्रदान करें ताकि मैं दीन दुखियों के काम आ सकूं. मैं सबके उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता हूँ. मुझे शक्ति एवं आशीर्वाद दो. मेरा लक्ष्य मानव मात्र की सेवा करना है एवं मैं यह कार्य तभी कर पाऊंगा जब आप मुझे अपना कृपा का अंग मात्र भी प्रदान करेंगेमैं आपको वचन देता हूँ कि आपके द्वारा दी गई शक्ति का उपयोग कभी भी अपने स्वार्थ हेतु नहीं करूंगा एवं इसका दुरूपयोग नहीं होने दूंगा.”

रेकी का प्रशिक्षण रेकी के मास्टर एवं ग्राण्ड मास्टर विभिन्न चरणों में देते हैं –
ये चरण हैं -
1) फ़र्स्ट डिग्री 2) सेकण्ड डिग्री 3) थर्ड डिग्री 4)  मास्टर डिग्री (5) रेकी ग्रांड मास्टर
वैसे देखा जाए तो रेकी का वास्तविक लाभ उन्हें ही सर्वाधिक मिलता है जो सकारात्मक विचारों के साथ पूरी आस्था एवं विश्वास पूर्वक रेकी को ग्रहण करते हैं. रेकी पद्धति में रोग के निदान हेतु दवाओं की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती अर्थात् रेकी स्पर्श चिकित्सा एक सहज सरल और बिना पैसों का इलाज है. रेकी को अपनाकर अपनी और दूसरों की सामान्य तथा जटिल बीमारियों का इलाज व्यक्ति स्वयं भी कर सकता है. यदि रेकी मास्टर की आध्यात्मिक शक्ति में बल है एवं उसके उपचार का ढंग लोगों को पसंद है तो रोगी निश्चित रूप से शीघ्रातिशीघ्र निरोग हो जाता है.
संक्षेप में, रेकी आध्यात्मिक स्पर्श चिकित्सा अपने मूल रूप में एक ध्यान विधि है जो रोगी तथा उपचारक का संबंध सीधे परमात्मा से जोड़ती है.
रेकी एक स्पर्श चिकित्सा है, पर यह अधुरा सच है, सिर्फ पहले चरण के व्यक्ति के लिये ही यह स्पर्श चिकित्सा है, दुसरा चरण सीखने के बाद से ही व्यक्ति आराम से दुरस्थ उपचार कर सकता है | मुख्यतः सात चक्रों के अलावा कुछ चक्र हमारे सर के उपर होते हैं और कुछ पैर के निचे भी | रेकी में मुख्य चक्र के साथ हथेलियों के मध्य में स्थित उर्जा केन्द्रों का भी महत्व है | हथेलियों के इन दो चक्रों के माध्यम से ही रेकी उर्जा का बहाव होता है | बड़े बुजुर्ग को जब हम प्रणाम करते हैं तो वो हमारे सर पर हाथ रख कर आशीर्वाद देते हैं | वो आशीर्वाद और कुछ नहीं अध्यात्मिक ऊर्जा ही है जिसका प्रवाह हथेलियों से होता रहता है | ऐसा नहीं है की रेकी लेने के बाद ही ये चक्र खुलेंगे और ऊर्जा का प्रवाह होगा | किसी भी अध्यात्मिक व्यक्ति के हथेलिओं से निकलती ऊर्जा को महसूस कर सकते हैं | ये ग़लतफ़हमी है की किसी का चक्र बंद है , अगर कोई भी चक्र बंद हो जाएगा तो इंसान जिन्दा नहीं बचेगा | जैसे मणिपुर चक्र पेट , लीवर किडनी को कण्ट्रोल करता है , अगर मणिपुर चक्र बंद हो जाएगा तो ये सब अंग काम करना बंद कर देंगे और व्यक्ति की मृत्यु हो जायेगी | चक्र बंद नहीं होते पूरी तरह बल्कि उनमे ब्लॉकेज होने से उर्जा का प्रवाह ठीक से नहीं हो पाता | अगर किसी का एक चक्र ज्यादा खुला हुआ है तो नीचे / उपर के चक्रों में उर्जा का प्रवाह ठीक से नहीं हो पायेगा और उस चक्र में ज्यादा ऊर्जा जमा हो जाने से व्यक्ति बहुत ज्यादा एक्टिव हो जाएगा | जैसे मणिपुर चक्र को लीजिये , ये हमारे अंदर तेजस्विता को बढाता है , आत्मबल और कार्य क्षमता प्रदान करता है | अगर ये चक्र बहुत ऊर्जावान हो जाए तो व्यक्ति का रवैया आक्रामक हो जाएगा , अपनी बात से टस से मस नहीं होगा , ऐसा कह सकते हैं को बहुत ज्यादा dominate करेगा | कम उर्जा भी ठीक नहीं , ऐसा होने से व्यक्ति में कार्यक्षमता ख़त्म हो जाएगी और आत्मबल घटने से डिप्रेशन में चला जायेगा | इसीलिए चक्रों की उर्जा को संतुलित करना जरूरी है | जितनी उर्जा की जरूरत है उतनी मिले , संतुलन हो और ज्यादा उर्जा को ग्राउंड कर दिया जाए | रेकी चक्र ध्यान से ये ब्लॉकेज को हटा कर , चक्रों को उर्जावान और संतुलित किया जाता है जिससे व्यक्ति का सार्वभौम विकास हो , अध्यात्मिक और सांसारिक जीवन संतुलन में हो |
चक्रों के रंग और स्थान की जानकारी होना बहुत जरूरी है | जैसा की पहले ही बताया गया है की रंग का सम्बन्ध एक निश्चित फ्रीक्वेंसी से होने के कारण एक निश्चित ऊर्जा की मात्रा से है | किस चक्र को कितनी ऊर्जा चाहिए वो उस चक्र से सम्बंधित रंग के गहरे चमकीले होने से है | हम तब तक हीलिंग देंगे जब तक ब्लॉकेज ख़त्म होकर , चक्र अपने रंग में तीव्रता से चमकने ना लगे उसके बाद ज्यादा या कम उर्जा का संतुलन करेंगे |
मानव शरीर मे स्थित  चक्र

(1)सहस्रार, (संस्कृत: सहस्रार, Sahasrāra) शीर्ष चक्र (सिर का शिखर; एक नवजात शिशु के सिर का ‘मुलायम स्थान’)
(2)आज्ञा, (संस्कृत: आज्ञा, Ājñā) ललाट या तृतीय नेत्र (चीटीदार ग्रंथि या तृतीय नेत्र)
(3)विशुद्ध, (संस्कृत: विशुद्ध, Viśuddha) कंठ चक्र (कंठ और गर्दन क्षेत्र)
(4)अनाहत, (संस्कृत: अनाहत, Anāhata) ह्रदय चक्र (ह्रदय क्षेत्र)
(5)मणिपूर, (संस्कृत: मणिपुर, Maṇipūra) सौर स्नायुजाल चक्र (नाभि क्षेत्र)
(6)स्वाधिष्ठान, (संस्कृत: स्वाधिष्ठान, Svādhiṣṭhāna) त्रिक चक्र (अंडाशय/पुरःस्थ ग्रंथि)
(7)मूलाधार, (संस्कृत: मूलाधार, Mūlādhāra) बेस या रूट चक्र (मेरूदंड की अंतिम हड्डी *कोक्सीक्स*)
हर चक्र को तीन मिनट देंगे | इस तरह से सात चक्रों में 21 मिनट लगेंगे |
एक मिनट तक रेकी से प्रार्थना करें की – हे रेकी आप मेरे अमुक ( चक्र का नाम ) के ब्लॉकेज को दूर करें और इसे स्वस्थ करें | और उस चक्र के ब्लॉकेज खुल रहे हैं , नकारात्मकता ख़त्म हो रही है ऐसी भावना करते हुए ऊर्जा देंते रहे
फिर एक मिनट तक रेकी से प्रार्थना करें की – हे रेकी आप मेरे अमुक ( चक्र का नाम ) को उतनी ऊर्जा दें जितने की इसे जरूरत है | और उस चक्र का रंग पूरी तरह गहरा और चमकीला हो रहा है ऐसी भावना करते हुए ऊर्जा दें |
फिर एक मिनट तक रेकी से प्रार्थना करें की – हे रेकी आप मेरे अमुक ( चक्र का नाम ) के कम या ज्यादा उर्जा को संतुलित करिए |
और उस चक्र को ऊर्जा दें
और अंत में रेकी से प्रार्थना करें की – हे रेकी आप मेरे सातों चक्रों की ऊर्जा को संतुलित करिए | रेकी के तीव्र प्रकाश के प्रवाह को पुरे रीढ़ की हड्डी में महसूस करिए|
अब रेकी का धन्यवाद करिए | दोनों हाथों को जोड़ से रगड़िये ,अपनी आखों को ढकिये और धीरे धीरे आखों को खोलिए |
अब आप खुद देखिये की क्या फर्क पडा है | आपके दिल से खुद ये आवाज आएगी – रेकी का धन्यवाद ( Thanks to Reiki) :)
आभार विधि
Attitude of gratitude
1-मैं अपना आभार व्यक्त करता हूँ/करती हूँ।
2-मैं डॉ मिकाओ उसुई का  आभार व्यक्त करता हूँ/करती हूँ।
3-मैं रैकी के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ/करती हूँ।
4-मैं रोगी का आभार व्यक्त करता हूँ/करती हूँ।
5-मैं स्वम अर्थात उपचारक का आभार व्यक्त करता हूँ/करती हूँ।
रेकी के पञ्च नियम/ सिद्धान्त
मात्र आज के दिन ;मैं सभी के प्रति आभारी रहूंगा।
मात्र आज के दिन मैं चिंता नहीं करूंगा।
मात्र आज के दिन मैं क्रोध नहीं करूंगा।
मात्र आज के दिन मैं अपना कार्य पूर्ण लगन से करूंगा।
मात्र आज के दिन मैं सभी जीवों के प्रति आदर व स्नेह प्रदर्शित करूंगा।
1-प्रार्थना
2-प्रेसर अंगुलियों और हथेलियों पर।
3-हथेलियों मे मसाज।
3-दोनों हांथों की झुलाना।
4-रेकी ध्यान-
सहस्रार-अग्र आज्ञा- अग्र विशुद्ध- अग्र अनाहत- अग्र मणिपूर- अग्र स्वाधिष्ठान- अग्र मूलाधार-पश्च मूलाधार- पश्च स्वाधिष्ठान-पश्च मणिपूर-पश्च अनाहत –दोनों कंधे-दोनों हाथ-दोनों हथेलियों।
5-समापन आभार
6- क्रास- मरीज से मानसिक सम्बंध विच्छेद।
……………………………………………………………….
रेकी मास्टर
आचार्य -आर.पी॰पटैल
(अध्यक्ष- भू-धर्म व जन जागरण समिति रजि॰)
एक्युप्रेरिस्ट,ज्यौति विशेषज्ञ  रैकी मास्टर
विवेकानन्द नगर एम.आई.जी-4  दमोह म.प्र.
मो.9300694736.,8109442751,
Mai.Id- astro.rppatel@gmail.com
https://www.youtube.com/watch?v=Dgwbdn8Cdq0
<div style="position:relative;height:0;padding-bottom:56.21%"><iframe src="https://www.youtube.com/embed/Dgwbdn8Cdq0?ecver=2" style="position:absolute;width:100%;height:100%;left:0" width="641" height="360" frameborder="0" allowfullscreen></iframe></div>


No comments:

Post a Comment