Monday, March 13, 2017

वैकल्पिक चिकित्सा के 8 विकल्प

प्राकृतिक चिकित्सा, पाद-चिकित्सा (chiropractic), जड़ी-बूटी चिकित्सा, आयुर्वेद, ध्यान, योग, जैवप्रतिपुष्टि, सम्मोहन, होम्योपैथी, एक्युपंक्चर और पोषण-आधारित उपचार-पद्धतियां वैकल्पिक चिकित्सा के प्रकार हैं।

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    वैकल्पिक चिकित्सा के प्रकार

    चिकित्सा क्षेत्र में भी अलग-अलग पद्धतियां हैं। कुछ मुख्यधारा में शामिल हैं तो कुछ वैकल्पिक पद्धतियां कहलाती हैं, लेकिन लक्ष्य सभी का एक है और वो है, स्वस्थ तन-मन का निर्माण। तो ऐसे में किसी एक ही चिकित्सा पद्धति (एलोपैथी) पर ही निर्भर होकर क्यों रहना। क्योंकि एलोपैथी से जहां तुरंत नतीजे मिलने का दावा किया जाता है, वहीं होमियोपैथी के पैरोकार रोग को जड़ से खत्म करने का दावा करते हैं। वहीं आयुर्वेद अनुशासन व सही खानपान को महत्व देता है और एक्यूप्रेशर-एक्यूपंक्चर जैसी पद्धतियां शारीरिक दर्द को कम करने के लिए प्रयासरत होती हैं। इसके अंतर्गत प्राकृतिक चिकित्सा, पाद-चिकित्सा (chiropractic), जड़ी-बूटी चिकित्सा, आयुर्वेद, ध्यान, योग, जैवप्रतिपुष्टि, सम्मोहन, होम्योपैथी, एक्युपंक्चर और पोषण-आधारित उपचार-पद्धतियां शामिल होती हैं। तो चसिये आज ऐसी ही कुछ वैकल्पिक चिकित्साओं की बात करते हैं, जिनको उपचार विकल्पों के रूप में अपनाया जा सकता है। 
    होमियोपैथी उपचार में प्रकृति के नियम बहुत काम आते हैं, होमियोपैथी भी इन्हीं पर आधारित है। होमियोपैथी लक्षणों पर आधारित पद्धति है। इसके अंतर्गत समान रोग में अलग लोगों की दवा अलग हो सकती है। हालांकि हर पद्धति की तरह इसकी भी कुछ सीमाएं हैं। इसमें सामान्य लक्षणों के आधार पर दवा दी जाती है। होमियोपैथी एंटीबायोटिक्स का सही विकल्प है। टॉन्सिल्स, साइनस, यूरिनरी  इन्फेक्शन,  डायरिया, डिसेंट्री, टीबी, ब्रोंकाइटिस, निमोनिया जैसे संक्रमणों में यह काफी कारगर होती है। 
    आयुर्वेद प्राकृतिक नियमों से उपचार करता है। इसका लक्ष्य मनुष्य का शारीरिक, मानसिक, सामाजिक व आध्यात्मिक कल्याण करना होता है। अथर्व-वेद में आयुर्वेद का उल्लेख मिलता है। आयुर्वेद को सृष्टि के पांच महा-तत्वों पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश व वायु के अनुसार बांटा गया है। इन्हें पंच-महाभूत भी कहा जाता है जोकि ये ब्रह्मांड को संचालित करते हैं। आयुर्वेद में वात, कफ व पित्त को संतुलित किया जाता है। यदि ये संतुलित होते हैं तो व्यक्ति स्वस्थ रहता है। 


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