Wednesday, March 22, 2017

दस महाविद्या - साधना उपासना

दस महाविद्या - साधना उपासना


आदि शक्ति के अपरम्पार रुप है। दस महाविद्या असल मे एक ही आदि शक्ति के अवतार है। वो क्रोध मे काली, सम्हारक क्रोध मे तारा और शिघ्र कोपि मे धूमवती का रुप धारण कर लेती है। दयाभाव मे प्रेम और पोषण मे वो भुवनेश्वरी, मतंगी और महालक्ष्मी का रुप धारण कर लेती है। शक्ति साधना में कुल दस महाविद्याओं की उपासना होती है। यह सब महाविद्या ज्ञान और शक्ति प्राप्त करने की कामना रखनेवाले उपासक करते है। ध्यान रहे, सिर्फ मंत्रजाप से कुछ नही होता साधक के कर्म भी शुद्ध होने जरुरी है. 

दस महाविद्या को इन नामो से सम्बोधित किया गया है...

1.काली माता,2. तारा माता,3. त्रिपुरसुंदरी माता,4. भुवनेश्वरी माता,5. त्रिपुर भैरवी माता 6. धूमावती माता,7. छिन्नमस्ता माता,8. बगलामुखी माता,9. मातंगी माता,10. कमला माता. इनके दो कुल होते है, एक है, काली कुल और दूसरा श्री कुल। चार साधानाए काली कुल की है और छः साधानाए श्री कुल की होती है।

महाविद्या साधना किसी भी धर्म का किसी भी जाति का साधक या साधिका कर सकते है. जाति, वर्ग, लिंग इस प्रकार के बन्धन दस महाविद्या मे नही होते। सभी महाविद्या मे काल भैरव की उपासना भी की जाती है। क्योकि महाविद्याओ कि क्रियाए जटिल होती है. इसलिए साधना शुरु करने से पहले पंच शुद्धिया करे.

1.स्थान शुद्धि: जहा पर साधना के लिये बैठते है उस जगह को शुद्ध कर लिजिये.पहले जमाने मे लोग गौमाता के गोबर से एवम गौमूत्र से सम्पूर्ण जगह को शुद्ध करते थे. आज मॉडर्न लाईफ स्टाईल मे कम से कम धुला हुआ आसन ले लिजिये. मंगलमय वातावरण के लिये अगरबत्ती जलाइये

2.देह शुद्धि: सात्विक भोजन का सेवन करे, ब्रम्हचर्य का पालन करे. साधना मे बैठने से पहले नहा कर, शौचादि शारिरीक क्रिया से निवृत्त हो जाये, बद्ध कोष्ठता गेसेस कि समस्या साधना मे भयंकर बाधा पैदा कर आपके लिये समस्या पैदा कर सकती है. शरिर जब व्याधी ग्रस्त हो, मतलब जुकाम बुखार इत्यादि तब साधना ना करे.प्राणायाम, योग इत्यादि के प्रयोग से देह शुद्धि मे मदद मिलती है. 

3.द्रव्य शुद्धि: द्रव्य शुद्धि के दो अर्थ है. पाप से कमाया गया धन इसमे इस्तेमाल ना करे. दूसरा, साधना के लिये जिन साधनोंका इस्तेमाल करे उनका स्वच्छ एवम पर्याप्त होना जरूरी है. स्वच्छ जल लेकर मंत्रजाप से गुरू इसे शुद्ध करके देंगे. (एवम पर्याप्त मतलब, टूटा प्याला, फटी चादर, टूटा फ्रेम, फटे नोट, टूटा फर्निचर इनका प्रयोग ना करे.)

4.देव शुद्धि: सिर्फ साधना के ही नही, घर की दूसरी मूर्तिया और तस्वीरोंको भी साफ कर ले 

5.मंत्र शुद्धि: योग्य गुरु के सनिध्य मे दीक्षा ग्रहण कीजिये। दीक्षा के दौरान शक्तिपात योग के द्वारा गुरू आपके अंदर शक्ति स्थान निर्माण करता है. 

साधना की मुद्राएँ न्यास, यंत्र- माला पूजन, प्राण प्रतिष्ठा, पंचोपचार आदि की जानकारी गुरु से ही प्राप्त होगी. 

साधक को अपने गुरु के चरण कमल के पास बैठकर साधना करनी चाहिये 

पंचोपचार, षोडषोपचार अथवा चौसठ उपचारों के द्वारा महाविद्या यंत्र में स्थित देवताओं का पूजन करे. उसमें स्थापित देवताओं की अनुमति प्राप्त कर पूजन कीजिये। तर्पण, हवन कर वेदी को ही देवता मानकर अग्नि रूप में पूजन करे. द्रव्यों को भेंट कर उसे संपूर्ण संतुष्ट करे। 

फिर देवता की आरती कर पुष्प अर्पण करे। गुरु द्वारा कवच-सहस्रनामं स्त्रोत्र का पाठ करके स्वयं को शक्ति के चरणों में समर्पित करे। देवता को अपने मन में याद कर के सामग्रीयो को नदि, तालाब, समुंदर मे समर्पित करने के लिये कहा गया है. लेकिन धरती मा और पर्यावरण का ध्यान रखते हुये सामग्री के उपर जल का छिड्काव करके प्रतिमात्मक विसर्जन की भावना रखकर देवताओंकी माफी मांगते हुये कहीं भी निकास करे. प्रतिकात्मक विसर्जन कि आज्ञा हमारे धर्म शास्त्र देते है. 

माँ कालि


मा कालि आदि शक्ती का पहला रूप है. कालि मतलब “कालिका”यानी समय कालिका. इसे समय का रूप माना जाता है. समय जो सबसे बलवान होता है. यह देवी हर प्रकार के बुराई काअ सर्वनाश करती है इसलिये उग्र रुप धारिणी है. उसका तांडव शिवजी के तांडव से भी भयावह था. इसलिये उनकी ऊर्जा से कही भूलोक नष्ट ना हो जाय इसलिये शिवजी भूलोक और काली मा के पैरोके बीच मे आकर उनके इस विनाशक शक्ती को खुद झेलते हुये दिखाई देते है. और हमे लगाता है, यह शिवजी के उपर नाच रही है. 

चंड और मुंड इन राक्षसोने मा दुर्गा पर आक्रमण किया था इसलिये वह इतनी क्रोधित हो गयी कि वह समय के आगे जाकर काले रंग कि हो गयी. 

एक बार दरुका नामक राक्षस को मारने के लिये भगवान शिवजी ने माता पार्वती को यह काम सौपा था. क्योंकिभोले नाथ ने स्वयम ही दरूका राक्षस को वरदान दिया था कि तुम्हे सिर्फ औरत से ही भय है. और दरुका को मारने के लिये शिव ने शक्ति की योजना की. 

रक्तबीज नामक राक्षस को भी मारने के लिये मा काली की योजना हुई थी. (जो कि मा दुर्गाका ही रूप है.) उनकी यह पोप्युलर तस्वीर रक्तबीज के सम्हारण के युद्ध के दरमियान की है. 

यह काम रुपिणी है. इन्हे हकीक की माला से मंत्रजाप करकर प्रसन्न किया जाता है। देवि कालि बीमारी को नष्ट करती है. दुष्ट आत्मा के प्रभाव से हमे मुक्त करती है दुष्ट ग्रह स्थिती से हमे बचाती है. अकाल मृत्यु से बचाने की ताकत अगर किसी मे है तो वो स्वयम माँ काली मे है. क्योंकी मा काली से स्वयम मृत्यु भी डरता है. वाक- सिद्धि यानी हम जो बोलेंगे वो ही सत्य हो जाता है. इसलिये माँ काली कि शक्ति को विधिवत प्राप्त करे. 

षट-कर्म के इच्छाधारी साधक के सभी षट-काम दस महाविद्या करती है. जैसे कि मारण, मोहन, वशीकरण, सम्मोहन, उच्चाटन, विदष्ण आदि... 

जिनकी उपजिविका तांत्रिक कर्मोंसे ही होती है वह षट-कर्म करते है, परन्तु बुरे कर्म का अंजाम कभी भी अच्छा नही होता.. समाज, प्रकृति, प्रारब्ध, कानून इसकी सजा देता है. इसलिए अपनी शक्ति से शुभ कार्य कीजिये. किसीका बुरा ना करे. बंगाल, आसाम हिमाचल प्रदेश मे इनके ज्यादा भक्त है. उनकी श्रेणी मे हम भी शामिल हो सकते है. 

मंत्र 
!! ॐ क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा !!

माँ काली स्तुति 
रक्ताsब्धिपोतारूणपद्मसंस्थां पाशांकुशेष्वासशराsसिबाणान्।शूलं कपालं दधतीं कराsब्जै रक्तां त्रिनेत्रां प्रणमामि देवीम् ॥ 

तारा माता


माँ तारा दस महाविद्या की दूसरी देवी है. इसे “तारिणी” माता भी कहा गया है। तारा माता के शरण मे जो साधक आता है उसका जीवन सफल हो जाता है. तारा माँ “फीडर’ है. मतलब जिसका स्नेहपूर्ण दूध कभी भी कम नही होता. साधक को एक दूध पीते बच्चे की तरह माँ अपनी गोद मे रखती है. उसे वात्सल्य का स्तनपान हररोज कराती है. 

तारा माँ भगवान शिवशंकर की भी माता है. तो तारा मा कि ताकत का अंदाजा लगाइये. जब देव और दानव समुदमंथन कर रहे थे तो विष निर्माण हुआ उस हलाहल से विश्व को बचाने के लिये शिव शंकर सामने आये उन्होने विष प्राषन किया. लेकिन गडबड यह हुई के उनके शरीर का दाह रुकने का नाम नही ले रहा थ. इसलिये मा दूर्गा ने तारा मा का रूप लिया और भगवान शिवजी ने शावक का रूप लिया.फिर तारा देवीउन्हे स्तन से लगाकार उन्हे स्तनोंका दूध पिलाने लगी. उस वात्सल्य पूर्ण स्तंनपान से शिवजी का दाह कम हुआ. लेकिन तारा मा के शरीर पर हलाहल का असर हुआ जिसके कारण वह नीले वर्ण की हो गयी. 

जिस मा ने शिवजी को स्तनपान किया है, वो अगर हमारी भी वात्सल्यसिंधू बन जायेगी तो हमारा जीवन धन्य हो जायेगा. तारा माता भी मा काली जैसे सिर्फ कमर को हाथोंकी माला पहनती है. उसके गले मे भी खोपडियोंकी मुंड माला है. 

वाक सिद्धि, रचनात्मकता, काव्य गुण के लिए शिघ्र मदद करती है. साधक का रक्षण स्वयमं माँ करती है इसलिये वह आपके शत्रूओंको जड से खत्म कर देती है. 

साधना के लिये लाल मूंगा, स्फटिक या काला हकीक की माला का इस्तेमाल करे. 121 की 3 माला करे. 

इनके दो मंत्र है. एक मंत्र मे “त्रिं” और दूसरे मे “स्त्रीं” ऐसे उच्चारण है.शक्ति का यह तारा रूप शुद्दोक्त ऋषि द्वारा शापित है. इसिलिये उच्चारण का ध्यान रहे. 

मंत्र 
“ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट” 

तारा स्तुति 
मातर्तीलसरस्वती प्रणमतां सौभाग्य-सम्पत्प्रदे प्रत्यालीढ –पदस्थिते शवह्यदि स्मेराननाम्भारुदे । 
फुल्लेन्दीवरलोचने त्रिनयने कर्त्रो कपालोत्पले खड्गञ्चादधती त्वमेव शरणं त्वामीश्वरीमाश्रये ॥

त्रिपुर सुंदरी माता

 
दस महाशक्ती मे इनका स्थान बहोत उंचे दरज्जे का है. तीनो लोक मे इनसे सुंदार माता का कोई रूप नही है. इसे शोडशी यानी सोलह साल की सुंदर लडकी माना गया है. इस ब्रम्हांड मे ऐसा कोई काम नही है जिसे त्रिपुर सुन्दरी माता नही कर सकती.

भगवान शिवजी ने दक्ष पुत्री सती से विवाह रचाया. जो दक्ष को पसंद नही था. एक दिन राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया. लेकिन उन्हे यह बभुत लगानेवाला फकिर दामाद पसंद ना होने कि वजह से पुत्रि और दामाद को निमंत्रित नही किया गया था. लडकी को लगा पिता शायद भूल गये होंगे इसलिये भग्वान शिव ने मना करने के बावजूद भी वह यज्ञ स्थली पर पहुची.उसे देख दक्ष उपरोधिक कटाक्ष करने लगे. उन शब्दोंको सती सह नही पाई इसलिये उसने सामने वाली आग के हवाले अपने आप को किया. 

यह दुखद समाचार मिलने के बाद शिवजी ने घोर तप करके पार्वती को हिमायत के द्वारा उत्पन्न किया. पार्वती ही आदि शक्ति होने के कारण उनकी फिरसे पत्नी बनी. आगे चलकर कामदेव को शिव पार्वती के जबरदस्ती के काम मिलन के कारण कामदेव को शिवजी ने तीसरी आंख खोलकर भस्म कर दिया. लेकिन विश्व की भलाई के महायज्ञ का आयोजन ब्रम्हा और विष्णू जी करना चाहते थे. उस वक्त कामदेव के भस्मसे कामदेव और उसके पत्नि के रूप मे ललिता त्रिपुर सुंदरी का निर्माण किया गया. त्रिपूर सुंदरी देवी भगवान विष्णू की बहन भी है. 

कामदेव की राख से उत्पन्न होने के कारण यह मिलनोत्सुक जोडे को तुरंत मिला देती है. इसकी उपासनासे गर्भ धारणा भी तुरंत होती है. क्योंकी मनुष्य योनी को आगे ले जाने की जिम्मेदारी उस महायज्ञ के बाद कामदेव और त्रिपुर सुंदरी को दिया गया है. 

त्रिपुर सुन्दरी माता की उपासना स्त्रीयोंको परमोच्च सुख प्रदान करती है. इनकी उपासना से हर इंसान सुंदर परिपक्व और बहोत प्यार करनेवाला आकर्षक व्यक्ति बन जाता है. यह शक्ति और भोग का सुंदर मिलाप है. यह वासनाओंका भोग ( सेक्स ) और मोक्ष दोनो साथ-साथ देने की ताकद रखती है। त्रिपुर सुंदरी माता कि साधना के अलावा दुनिया मे ऐसी कोई साधना नही है जो भोग और मोक्ष दोनो को एक साथ प्रदान करे. 

त्रिपुर सुंदरी माँ को प्रसन्न करने के लिये रुद्राक्ष की माला का आयोजन करे. एक मुखी रुद्राक्ष माँ को ज्यादा पसंदहै. लेकिन एक मुखी नही है तो भी उसकी कृपा मे कमी नही आती. 54 की 8 माला करे. 

मंत्र 
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः

त्रिपुर सुंदरी माता स्तुति 
उद्यद्भानुसहस्रकान्तिमरुणक्षौमां शिरोमालिकां रक्तालिप्तपयोधरां जपपटीं विद्यामभीतिं वरम् । 
हस्ताब्जैर्दधतीं त्रिनेत्रविलसद्वक्त्रारविन्दश्रियं देवीं बद्धहिमांशुरत्नमुकुटां वन्दे समन्दस्मिताम् ॥

माता भुवनेश्वरी

 
माँ भुवनेश्वरी दस महाविद्या की चौथी देवी है. भुवनेश्वरी मतलब जिनकी सत्ता तीनो लोक पर होती है ऐसी ऐश्वर्य सम्पन्न देवी. साधना हर प्रकार के सुख मे वृद्धि करने वाली होती है. देवी भुवनेश्वरी की खास बात यह है कि यह अत्यंत भोली है. जिसके कारण वह बहुत ही कम समय मे प्रसन्न हो जाती है. लेकिन माता का यह रूप अत्यंत कोपिष्ठ भी है. और किसी कारण से माता रूठ गयी तो मनाने के लिये दो गुनी साधना करनी पडती है. देवी माँ से कभी भी झूठ या स्वार्थ पूर्ण वचन ना करे.

यह शक्ति किसी साधक को प्राप्त हो जाये तो उसके रिश्तेदार, मित्रगण आदि उसके कदमो मे आकर गिरते है. उसकी इज्जत समाज मे बहोत ज्यादा बढ जाती है. मशिनोंके साथ काम करने वाले लोगोंके उपर यह इतनी प्रसन्न हो जाती है कि मा मशीन का रूप धारण कर लेती है, जिसके चलते कभी भी उस मशीनके साथ कोई हादसा एक्सीडंट नही होता. 

दिमाग से काम करनेवाले व्यापारी का दिमाग स्थिर सखने मे माता भुवनेश्वरी मदद करती है. उच्च पद कि परिक्षाओमे सही उत्तर सही समय पर याद दिलाने का काम माता भुवनेश्वरी करती है. इसलिये कलेक्टर, कमिश्नर पदो के लिये परिक्षा देने वाले विद्यार्थी मा भुवनेश्वरी के शरण मे आ जाते है. 

ब्रम्हांड कि निर्मिती के वक्त सूर्य नारायण अकेलेही अपनी शक्ती का प्रदर्शन कर रहे थे इसी को लेकर ब्रम्हा, विष्णू और महेश मे अपने इस निर्माण कार्य को (सूर्य की उत्पत्ती)लेकर शक्ति प्रदर्शन मे बहस छिड गयी. हर किसी का दावा होने लगा कि सर्वशक्तिमान कौन है. इसिलिये आदिशक्ति ने पृथ्वी का रूप लेकर उन तीनोंका गर्व हरण किया. क्योंकी भूमाता सिर्फ शांत थी ऐसे नही उसके गर्भ मे पानी भी था जो सुर्य की शक्ती को शांत कर सकता था. इसिलिये भुवनेश्वरी माता का सीना आधा खुला है,क्योंकी सृष्टी का सर्जन निरंतर हो रहा है उसका भरण पोषण भी निरंतर हो रहा है. इसी कारण मा का सीना बहोत बडा और हमेशा भरा हुआ रहता है. 

जिस स्त्री को दूध कम है, या जिस माता का दूध शिशु के लिये पूरा नही हो रहा है, या जिन स्त्रियोंकी कोक सूनी है, उन्होने, अपने पति के साथ मिलकर मा भुवनेश्वरी की आराधना करनी चाहिये. 

भुवनेश्वरी मा आपको कदापि निराश नही करेगी. 

भुवनेश्वरी माता की आराधना के लिये पानी जैसे स्फटिक की माला का प्रयोग, सफेद धागे मे पिरोकर करे. इनका मंत्रजाप 11 मालाओंसे करे. 

मन्त्र 
“ॐ ऐं ह्रीं श्रीं नमः”

भुवनेश्वरी स्तुति 
उद्यद्दिनद्युतिमिन्दुकिरीटां तुंगकुचां नयनवययुक्ताम् । स्मेरमुखीं वरदाङ्कुश पाशभीतिकरां प्रभजे भुवनेशीम् ॥

छिन्नमस्ता देवी

 
छिन्नमस्ता देवी को छिन्नमस्तिका, प्रचंड चंडिका के नामोंसे भी सम्बोधित किया जाता है. इनसे प्राप्त होनेवाली यह विद्या अति प्रभावशाली है. प्रभाव ज्यादा होने के कारण इसे धारण करना सामान्य साधक के बस की बात नही है. छिन्नमस्ता देवी शत्रू को खदेड खदेड कर मारती है. कई बार तो शत्रू का जबतक सर्व नाश नही होता तब तक मा उसे तडपा तडपाकर हर रोज मार देती है. 

यह देवी जीवन भी देनेवाली है और मौत भी देती है. इनके दरबार मे अपने फैसले वो खुद लेती है. इनकी सत्ता अपरम्पार है. 

रोजगार में सफलता, वशिकरण मे सफलता, नौकरी मे अच्छा बॉस मिलना, पद उन्नती मिलना, कोर्ट कचहरी के केस को अपने फेवर मे लाना आदि काम करने मे माता को बडा मजा आता है. किसी भी व्यक्ती को आपके पक्ष मे करना, कुंडिलीनी शक्ती जागृत करना, औरत या आदमी को तुरंत वश करना ऐसे चमत्कार छिन्नमस्ता देवी के बाये हाथ का खेल है. 

माँ के इस रूप की साधना सावधान होकर करे. क्योकि यह शक्ति अत्यंत तीव्र है. शक्ति के दूसरे रूप अगर चंद्रमा है तो यह रुप सुर्य नारायण है. इतनी इसकी शक्तिया प्रभावशाली है.इनके दरबार मे फटाफट रिजल्ट मिलता है. साधक को लम्बा इंतजार नही करना पडता है. छिन्न्मस्ता माता वस्त्र को धारण नही करती है. सिर्फ मनुष्य खोपडियोंको धारण करती है. 

उसकी सेविकाये अपनी सगी बहने मेखला (डाकिणी) और कनखला (वर्णिणी) भी नग्न है.और उन्हे छिन्नमस्ता देवी अपना रक्त पिला रही है. अपने ही गले को काटकर अपना ही रक्त पीनेवाली यह जबर्दस्त शक्ती है. कितना निडर मन है उसका कि स्वयम का गला स्वयम ही काटकर अपना ही सर एक हाथ मे पकडकर अपना ही भोग ले रही है. यह माता स्थिर या बैठी हुई या खडी नही है. यह माता सतत परिभ्रमण करती है. यही इसकी तकद है लेकिन भक्तो के लिये इसे अपने पास रखना बडा मुष्किल काम होता है. क्योंकी जहा आपकी भक्ति कम हुई के ये चली जायेगी दूसरे भक्त के पास. 

उनके कदमोंके नीचे कामदेव और उनकी पत्नी रति कामक्रिडा करते हुये पाये जाते है. कई बार यह राध-क्रिष्ण की जोडी का रूप लेती है. उनके रती क्रिडा मे स्त्रीपात्र उपर और पुरुष पात्र नीचे है. यह चीज दर्शाती है कि छिन्नमस्ता मा कितनी ताकतवर है. वह अपनेही भक्त को कुचल सकती है. क्योंकि अगर साधक ने साधाना के दरमियान आलस किया और साधना पूरी नही की तो छिन्नमस्ता मा के क्रोध की कोई सीमा नही रहती. उनके पास धन कपडे या किसी चीज का लालच देकर प्रसन्न कराने के अन्य कोई उपाय नही है. क्योंकी इन्होने सभी चीजोंका त्याग किया हुआ है. 

लेकिन जिस साधक को ये प्रसन्न हो जाती है उसे वह अपने सीने से लगाकार अमृत स्तनपान कराती है. फिर चाहे वह दुनिया मे कही भी चली जाय आपको उसकी असीम ममता का दूध मिलता ही रहता है. लेकिन उतना लायक बनने के लिये आपको कडक साधना करनी पडती है.

छिन्न्मस्ता माँ का मंत्रजाप काले हकीक की माला से करे. किसी भी अमावस को उपासना शुरू करे और अगले अमावस तक बिना खंडित किये माला करे. दस बार सोचकर माता की आराधना करे. अगर अमावस से पहले किसी कारण से साधना खंडित हो गयी तो आपका मस्तिष्क छिन्न छिन्न को जायेगा. यानी आप पागल हो सकते है. या आपके प्राण भी वो ले सकती है. या तो साधना शुरू ही ना करे. 

लेकिन जो साधक मन के दृढ निश्चयी है, उन्होने इस साधना की अलौकिक अनुभूति को प्राप्त करना ही चाहिये. मन मे अगर इच्छा है तो इसे अवश्य करे. 

मंत्र 
“श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट स्वाहा: 

छिन्नमस्ता देवी स्तुति 
नाभौ शुद्धसरोजवक्त्रविलसद्बांधुकपुष्पारुणं भास्वद्भास्करमणडलं तदुदरे तद्योनिचक्रं महत् । तन्मध्ये विपरीतमैथुनरतप्रद्युम्नसत्कामिनी पृष्ठस्थां तरुणार्ककोटिविलसत्तेज: स्वरुपां भजे ॥ 

माँ त्रिपुर भैरवी

 
भैरवी नाम जिस शक्ति के साथ आता है, वहाँ तंत्र विद्याओंका होना अनिवार्य होता है. प्रेत आत्माओंसे सीधा सम्बंध रखने वाली यह माता अत्यंत खतरनाक है. अघोर शैतानी तंत्रिक प्रयोगो के लिए इस मा की सहायता ली जाती है. सुन्दर स्त्री की कामना या धनी पुरुष प्राप्ति के लिए त्रिपुर भैरवी मा की सेवा की जाती है. प्रेम सम्बंध मे विवाह होना, सालो-साल से रुके हुये मंगल कार्य को गती देना, विवाह बंधनके उपरांत प्रेमी को पाना, समाज मे प्रेमके कारण बदनाम ना होना इन सबके लिये मॉ श्री त्रिपुर भैरवी देवी की आराधना की जाती है. इनकी साधना तुरंत प्रभाव दिखाती है. तांत्रिक समस्या का समाधान त्रिपुर भैरवी के पास होता है. समस्या का जड से विनाश त्रिपुर भैरवी देवी करती है। 

देवी कि साधना घोर कर्मों से सम्बंधित कार्यों में की जाती हैं। देवी मनुष्य स्वभाव से वासना, लालच, क्रोध, ईर्ष्या, नशा तथा भ्रम को मुक्त कर योग साधना में सफलता हेतु सहायता करती हैं। समस्त प्रकार के विकारो या दोषो को दूर कर मनुष्य साधना या योग के उच्चतम स्तर तक पहुँच सकता है अन्यथा नहीं। कुण्डलिनी शक्ति जाग्रति हेतु, समस्त प्रकार के मानव दोषो या अष्ट पाशो का विनाश आवश्यक है तथा ये शक्ति देवी त्रिपुर भैरवी द्वारा ही प्राप्त होती हैं। 

यह देवी श्मशान वासिनी है, मानव शव या मृत देह देवी का आसन हैं. देवी मांस तथा रक्त प्रिया है तथा शव पर ही आरूढ़ होती हैं. भगवती त्रिपुर भैरवी, ललित या महा त्रिपुर सुंदरी कि रथ वाहिनी हैं तथा योगिनिओ की अधिष्ठात्री या स्वामिनी के रूप में विराजमान हैं. देवी भैरवी दृढ़ निश्चय का भी प्रतिक है, इन्होंने ही पार्वती के स्वरूप में भगवान शिव को पति रूप में पाने का दृढ़ निश्चय किया था, देवी की तपस्या को देख सम्पूर्ण जगत दंग रहा गया था। देवी के भैरव बटुक हैं तथा भगवान नृसिंह की शक्ति हैं. देवी की भैरवी का नाम काल रात्रि है तथा भैरव काल भैरव. मूंगे की माला पीले धागे मे पिरोकर 21 बार 21 की माला करे. 

मंत्र 
“ॐ ह्रीं भैरवी कलौं ह्रीं स्वाहा:” 

त्रिपुरभैरवी देवी स्तुति 
उद्यद्भानुसहस्रकान्तिमरुणक्षौमां शिरोमालिकां रक्तालिप्तपयोधरां जपपटीं विद्यामभीतिं वरम् । हस्ताब्जैर्दधतीं त्रिनेत्रविलसद्वक्त्रारविन्दश्रियं देवीं बद्धहिमांशुरत्नमुकुटां वन्दे समन्दस्मिताम् ॥ 

माँ धूमावती

 
देवी धूमावती, भगवान शिव के विधवा के रूप में विद्यमान हैं, अपने पति शिव को निगल जाने के कारन देवी विधवा हैं। देवी का भौतिक स्वरूप क्रोध से उत्पन्न दुष्परिणाम तथा पश्चाताप को भी इंगित करती हैं। इन्हें लक्ष्मी जी की ज्येष्ठ, ज्येष्ठा नाम से भी जाना जाता हैं जो स्वयं कई समस्याओं को उत्पन्न करती हैं।

देवी धूमावती का वास्तविक रूप धुऐ जैसा हैं तथा इसी स्वरूप में देवी विद्यमान हैं। शारीरिक स्वरूप से देवी; कुरूप, उबार खाबर या बेढ़ंग शरीर वाली, विचलित स्वाभाव वाली, लंबे कद वाली, तीन नेत्रों से युक्त तथा मैले वस्त्र धारण करने वाली हैं। देवी के दांत तथा नाक लम्बी कुरूप हैं, कान डरावने, लड़खड़ाते हुए हाथ-पैर, स्तन झूलते हुए प्रतीत होती हैं। देवी खुले बालो से युक्त, एक वृद्ध विधवा का रूप धारण की हुई हैं। अपने बायें हाथ में देवी ने सूप तथा दायें हाथ में मानव खोपड़ी से निर्मित खप्पर धारण कर रखा हैं कही कही वो आशीर्वाद भी दे रही हैं। देवी का स्वाभाव अत्यंत अशिष्ट हैं तथा देवी सर्वदा अतृप्त तथा भूखी-प्यासी हैं। देवी काले वर्ण की है तथा इन्होंने सर्पो, रुद्राक्षों को अपने आभूषण स्वरूप धारण कर रखा हैं। देवी श्मशान घाटो में मृत शरीर से निकले हुए स्वेत वस्त्रो को धारण करती हैं तथा श्मशान भूमि में ही निवास करती हैं, समाज से बहिष्कृत हैं। देवी कौवो द्वारा खीचते हुए रथ पर आरूढ़ हैं। देवी का सम्बन्ध पूर्णतः स्वेत वस्तुओं से ही हैं तथा लाल वर्ण से सम्बंधित वस्तुओं का पूर्णतः त्याग करती हैं।

चुकी देवी ने क्रोध वश अपने ही पति को खा लिया, देवी का सम्बन्ध दुर्भाग्य, अपवित्र, बेडौल, कुरूप जैसे नकारात्मक तथ्यों से हैं। देवी श्मशान तथा अंधेरे स्थानों में निवास करने वाली है, समाज से बहिष्कृत है, (देवी से सम्बंधित चित्र घर में नहीं रखना चाहिए) अपवित्र स्थानों पर रहने वाली हैं।देवी का सम्बन्ध पूर्णतः अशुभता तथा नकारात्मक तत्वों से हैं, देवी के आराधना अशुभता तथा नकारात्मक विचारो के निवारण हेतु की जाती हैं। देवी धूमावती की उपासना विपत्ति नाश, रोग निवारण, युद्ध विजय, मारण, उच्चाटन इत्यादि कर्मों में की जाती हैं। देवी के कोप से शोक, कलह, क्षुधा, तृष्णा होते है। देवी प्रसन्न होने पर रोग तथा शोक दोनों विनाश कर देती है और कुपित होने पर समस्त भोग कर रहे कामनाओ का नाश कर देती हैं। आगम ग्रंथो के अनुसार, अभाव, संकट, कलह, रोग इत्यादि को दूर रखने हेतु देवी के आराधना की जाती हैं।धूमावती देवी हर प्रकार की द्ररिद्रता का नाश करती है. तंत्र – मंत्र को अंजाम तक ले जाती है. जादू – टोना से बचने के लिये मॉ धुमावती हमारी सहायता करती है. बुरी नजर और भूत - प्रेत आदि समस्त मॉ धूमावती के शरण मे होते है.

शरीर के सभी रोग एवम पीडा से मुक्ति के लिए इनकी साधना की जाती है. अभय वरदान देने की क्षमता धूमावती देवी मे है. किसी भी प्रकार के अघोर साधना मे मॉ धूमावती हमारी रक्षा करती है. इसे अलक्ष्मी के नाम से इसलिये जाना जाता है क्योंकी अंजाने मे हमसे तंत्र साधनामे भूल हो जाती है तो मॉ हमारा रक्षण करती है.

सफेद हीरा या बैगनी मोती की माला या काले हकीक की माला का प्रयोग साधना के लिये करे. सूर्य अस्त होने के बाद 6 बार 54 कि माला करे. 

मंत्र 
ओम धु धू धूमावति धूमावति देवै स्वाहा 

धूमावती देवी स्तुति 
प्रातर्यास्यात्कमारी कुसुमकलिकया जापमाला जयन्ती मध्याह्रेप्रौढरूपा विकसितवदना चारुनेत्रा निशायाम् सन्ध्यायां वृद्धरूपा गलितकुचयुगा मुण्डमालां वहन्ती सा देवी देवदेवी त्रिभुवनजननी कालोका पातु युष्मान् ॥ 

बगलामुखी माता

 
बगलामुखी माता अत्यंत प्रभावशाली है. यह जबरदस्त ताकद है. 

तंत्र विद्या एवँ शत्रुनाश, कोर्ट कचहरी में विजय यह सब बगलामुखी माता के लिये बहोत आसान काम है. बगलामुखी माता एक भयंकर विनाशक शक्ति है.इस माता का आशिर्वाद पाना बहोत सरल है. लेकिन इसका हाथ हमेशा सर पर बना रहे इसलिए बहोत मेहनत और धैर्य की जरूरत पडती है.

देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध अलौकिक, पारलौकिक जादुई शक्तिओ से भी हैं, जिसे इंद्रजाल काहा जाता हैं। उच्चाटन, स्तम्भन, मारन जैसे घोर कृत्यों तथा इंद्रजाल विद्या, देवी की कृपा के बिना संपूर्ण नहीं हो पाते हैं। देवी ही समस्त प्रकार के ऋद्धि तथा सिद्धि प्रदान करने वाली है, विशेषकर, तीनो लोको में किसी को भी आकर्षित करने की शक्ति, वाक् शक्ति, स्तंभन शक्ति। देवी के भक्त अपने शत्रुओ को ही नहीं बल्कि तीनो लोको को वश करने में समर्थ होते हैं,

यह माता अत्यंत मूडी है. जरूरत पडने पर साधक का भक्षण करने मे भी इसे देर नही लगती. शेरनी जैसे भूख लगने पर अपनेही शावक को स्वाहा करती है उसी प्रकार से बगलामुखी माता भी काम करती है. इसलिये इनकी शरण मे आने के लिये भी शेर का ही कलेजा चाहिये. लेकिन जिस भक्त ने इसे सही ढंग से जाना उसके लिये माता से कोई भी काम कराना मुश्किल नही है. 

परीक्षा में सफलता के लिए, नौकरी मे तरक्की के लिए माँ बगलामुखी की साधना की जाती है. माताके दूसरे रुपोंके विपरित यह रूप भक्त के कहने पर शिफारिश का काम भी करती है. यानी जिस साधक को बगलामुखी माता प्रसन्न हो जाती है वह साधक दूसरे भक्तोंका काम भी माताके जरिये करता है. इसलिये बगलामुखी माता तांत्रिक लोगों मे ज्यादा पोप्युलर है. 

इस विद्या का उपयोग केवल तभी किया जाता है, जब सब रास्ते बंद हो जाते है.हल्दी की 108 कि माला से कम से कम 16 माला जाप करें। यह विद्या ब्रह्मास्त्र है, यह भगवान विष्णु की संहारक शक्ति है. इसका इस्तेमाल करने से पहले दस बार सोचना जरूरी है.

मन्त्र 
ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै ह्लीं ॐ नम:

बगलामूखी स्तुति 
मध्ये सुधाब्धि – मणि मण्डप – रत्नवेद्यां सिंहासनोपरिगतां परिपीतवर्णाम् । 
पीताम्बराभरण – माल्य – बिभूतिषताङ्गी देवीं स्मरामि धृत-मुद्गर वैरिजिह्वाम् ॥

देवी मातंगी

 
देवी मातंगी दस महाविद्याओं में नवे स्थान पर अवस्थित हैं तथा देवी निम्न जाती तथा जनजातिओ से सम्बंधित रखती हैं। देवी का एक अन्य विख्यात नाम उच्छिष्ट चांडालिनी भी हैं तथा देवी का सम्बन्ध नाना प्रकार के तंत्र क्रियाओं से हैं। इंद्रजाल विद्या या जादुई शक्ति कि देवी प्रदाता हैं, 

देवी हिन्दू समाज के अत्यंत निम्न जाती, चांडाल सम्बद्ध हैं, देवी चांडालिनी हैं तथा भगवान शिव चांडाल। (चांडालश्मशान घाटो में शव दाह से सम्बंधित कार्य करते हैं) तंत्र शास्त्र में देवी की उपासना विशेषकर वाक् सिद्धि (जो बोला जाये वही हो) हेतु, पुरुषार्थ सिद्धि तथा भोगविलास में पारंगत होने हेतु कि जाती हैं। देवी मातंगी चौसठ प्रकार के ललित कलाओं से सम्बंधित विद्याओं से निपुण हैं तथा तोता पक्षी इनके बहुत निकट हैं।देवी मातंगी अपने घर मे आनेवाले क्लेश एवं सभी विघ्नो को हरने वाली होती है. शादी इच्छुक लडका लडकी मा मातंगी के शरण मे आतेही उचित फल शिघ्र ही मिलता है. संतान प्राप्ति के लिये भी दम्पति को देवी मातंगी के शरण मे आना चहिये. 

इनके रिझल्ट बहोत अच्छे है. पुत्र प्राप्ति के लिए भी माता के शरण मे लोग आते है. लेकिन माता स्वयम नर और नारी कि उत्पत्ती को सृष्टी मे सम समान रूप से पैदा करती है.इसीलिये हर बार आप को लडका ही हो ये माता जरूरी नही समझती. लेकिन आपकी इच्छा अगर उसके कुदरत के नियम अनुसार है और माता कि करुणा मई प्रार्थना की तो पुत्र प्राप्ती के आसार बढ जाते है. इसलिये माता की सेवा बहोत दिल लगाकर करनी पडती है. 

या किसी भी प्रकार कि पारिवारिक समस्या सुलझाने एवं दुख हरने के लिए देवी मातंगी की साधना उत्तम है। 

इनकी कृपा से स्त्रीयो का सहयोग सहज ही मिलने लगता है. लेकिन इस अपरम्पार शक्तिका दुरूपयोग करकर लोगोंके संसार ध्वस्त ना करे. किसी भी स्त्री का पातिव्रत्य भंग ना करे. लेकिन कोई स्त्री मन ही मन मे आपको चाहती है और आपसे भोग की कामना रखती है, तो उस स्त्री के संसार की भी रक्षा देवी मातंगी करती है. यह बडी कमाल की देवी है, जो अपने भक्तोंसे इतना प्यार करती है, कि भक्तोके भोग विलास के लिये यह स्वयम मदद करती है. 

इसके प्राप्ति के लिए स्फटिक की माला का प्रयोग करे बारह माला जप सुर्य देवता उगने से पहले करना चहिए. माला चौपन्न कि हो. 

मंत्र 
ॐ ह्रीं ऐं भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा:

मातङगी मा स्तुति 
श्यामां शुभ्रांशुभालां त्रिकमलनयनां रत्नसिंहासनस्थां भक्ताभीष्टप्रदात्रीं सुरनिकरकरासेव्यकंजांयुग्माम् । 

निलाम्भोजांशुकान्ति निशिचरनिकारारण्यदावाग्निरूपां पाशं खङ्गं चतुर्भिर्वरकमलकै: खेदकं चाङ्कुशं च ॥

कमला माता

 
देवी कमला का स्वरूप अत्यंत ही मनोहर तथा मनमोहक हैं. तथा स्वर्णिम आभा लिया हुए है. देवी का स्वरूप अत्यंत सुन्दर हैं, मुख मंडल पर हलकी सी मुस्कान हैं, कमल के सामान इनके तीन नेत्र हैं, अपने मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करती हैं। देवी के चार भुजाये है तथा वे अपने ऊपर की दो हाथों में कमल पुष्प धारण करती हैं. तथा निचे के दो हाथों से वर तथा अभय मुद्रा प्रदर्शित करती हैं। देवी कमला मूल्य रत्नो तथा कौस्तुभ मणि से सुसज्जित मुकुट अपने मस्तक पर धारण करती हैं, सुन्दर रेशमी साड़ी से शोभित हैं. तथा अमूल्य रत्नो से युक्त विभिन्न आभूषण धारण करती हैं। देवी सागर के मध्य में, कमल पुष्पों से घिरी हुई तथा कमल के ही आसन पर बैठी हुई हैं। हाथीयों के समूह देवी को अमृत के कलश से स्नान करा रहे हैं। 

यभगवान विष्णु से विवाह होने के परिणामस्वरूप, देवी का सम्बन्ध सत्व गुण से हैं. तथा वे वैष्णवी शक्ति की अधिष्ठात्री हैं। भगवान विष्णु देवी कमला के भैरव हैं। शासन, राज पाट, मूल्यवान् धातु तथा रत्न जैसे पुखराज, पन्ना, हीरा इत्यादि, सौंदर्य से सम्बंधित सामग्री, जेवरात इत्यादि देवी से सम्बंधित हैं प्रदाता हैं। देवी की उपस्थिति तीनो लोको को सुखमय तथा पवित्र बनती हैं. अन्यथा इन की बहन देवी धूमावती या निऋतिनिर्धनता तथा अभाव के स्वरूप में वास करती हैं। व्यापारी वर्ग, शासन से सम्बंधित कार्य करने वाले देवी की विशेष तौर पर अराधना, पूजा इत्यादि करते हैं। देवी हिन्दू धर्म के अंतर्गत सबसे प्रसिद्ध हैं. तथा समस्त वर्गों द्वारा पूजिता हैं, तंत्र के अंतर्गत देवी की पूजा तांत्रिक लक्ष्मी रूप से की जाती हैं। तंत्रो के अनुसार भी देवी समृद्धि, सौभाग्य और धन प्रदाता हैं।

मद, अहंकार में चूर इंद्र को दुर्वासा ऋषि ने शाप दिया कि देवता लक्ष्मी हीन हो जाये, जिसके परिणामस्वरूप देवता निस्तेज, सुख-वैभव से वंचित, धन तथा शक्ति हीन हो गए। दैत्य गुरु शुक्राचार्य के आदर्शों पर चल कर उनका शिष्य दैत्य राज बलि ने स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया। समस्त देवता, सुख, वैभव, संपत्ति, समृद्धि से वंचित हो पृथ्वी पर छुप कर रहने लगे, उनका जीवन बड़ा ही कष्ट मय हो गया था। पुनः सुख, वैभव, साम्राज्य, सम्पन्नता की प्राप्ति हेतु भगवान् विष्णु के आदेशानुसार, देवताओं ने दैत्यों से संधि की तथा समुद्र का मंथन किया। जिससे १४ प्रकार के रत्न प्राप्त हुए, जिनमें देवी कमला भी थीं।

भगवान श्री हरि की नित्य शक्ति देवी कमला के प्रकट होने पर, बिजली के समान चमकीली छठा से दिशाएँ जगमगाने लगी, उनके सौन्दर्य, औदार्य, यौवन, रूप-रंग और महिमा से सभी को अपने ओर आकर्षित किया। देवता, असुर, मनुष्य सभी देवी कमला को लेने के लिये उत्साहित हुए, स्वयं इंद्र ने देवी के बैठने के लिये अपने दिव्य आसन प्रदान किया। श्रेष्ठ नदियों ने सोने के घड़े में भर भर कर पवित्र जल से देवी का अभिषेक किया, पृथ्वी ने अभिषेक हेतु समस्त औषिधयां प्रदान की। गौओं ने पंचगव्य, वसंत ऋतु ने समस्त फूल-फल तथा ऋषियों ने विधि पूर्वक देवी का अभिषेक सम्पन्न किया। गन्धर्वों ने मंगल गान की, नर्तकियां नाच-नाच कर गाने लगी, बादल सदेह होकर मृदंग, डमरू, ढोल, नगारें, नरसिंगे, शंख, वेणु और वीणा बजाने लगे, तदनंतर देवी कमला हाथों पद्म (कमल) ले सिंहासन पर विराजमान हुई। दिग्गजों ने जल से भरे कलशों से उन्हें स्नान कराया, ब्राह्मणों ने वेद मन्त्रों का पाठ किया। समुद्र ने देवी को पीला रेशमी वस्त्र धारण करने हेतु प्रदान किया, वरुण ने वैजन्ती माला प्रदान की जिसकी मधुमय सुगंध से भौरें मतवाले हो रहे थे। विश्वकर्मा ने भांति-भांति के आभूषण, देवी सरस्वती ने मोतियों का हार, ब्रह्मा जी ने कामल और नागों ने दो कुंडल देवी कमला को प्रदान किये। इसके पश्चात् देवी कमला ने अपने हाथों से कमल की माला लेकर उसे सर्व गुणसम्पन्न, पुरुषोत्तम श्री हरि विष्णु के गले में डाल उन्हें अपना आश्रय बनाया, वर रूप में चयन किया।

लक्ष्मी जी को सभी (दानव, मनुष्य, देवता) प्राप्त करना चाहते थे, परन्तु लक्ष्मी जी ने श्री विष्णु का ही वर रूप में चयन किया, जिन्हे मा कमला की जानकारी होती है वह लोग दीपावली पर भी इनका पूजन रचते है।

इस संसार मे जितनी भी सुन्दर लडकीयाँ है वे सब कमला मा के कारण है. सुन्दर वस्तु, सुंदर पुष्प मा कमला कि ही देन है. हर प्रकार की साधना मे रिद्धि सिद्धि दिलाने वाली, अखंड धन धान्य प्राप्ति के लिये मा कमलाके शरण मे आना अनिवार्य है.

भक्तोंके ऋण का नाश करनेमे मा कमला अग्रसर रहती है. अगर कोई साधक महालक्ष्मी जी की कृपा चाहता है तो कमल पर विराजमान देवी की साधना करें। पुराण शास्त्रोंको माने तो मा कमला कि साधना करके ही इन्द्र देव स्वर्ग पर राज कर रहे है.

मा कमला की उपासना के लिए 21 कमलगट्टे की माला बनाये या ले (यानी के कमल के फूल के निचे का लम्बा हिस्सा) और उससे 14 माला मंत्र जप करे. 

मंत्र 
ॐ हसौ: जगत प्रसुत्तयै स्वाहा: 

कमला मा स्तुति 
त्रैलोक्यपूजिते देवि कमले विष्णुबल्लभे । 

यथा त्वमचल कृष्णे तथा भव मयि स्थिरा ॥ 

बिना गुरू, बिना यंत्र, बिना माला और ज्ञान के बिना किसी भी देवी की उपासना ना करे। दस महाविद्या को हासिल करना मामुली साधक का काम नही है. केवल उच्चकोटी के साधक ही अंतिम फल कि प्राप्ति कर सकते है. ॐ 

Tuesday, March 21, 2017

रेकी उपचार परिचय

रेकी  एक आध्यात्मिक अभ्यास पद्धति है, जिसका विकास १९२२ में मिकाओ उसुई ने किया था। यह तनाव और उपचार संबंधी एक जापानी विधि है, जो काफी कुछ योग जैसी है। मान्यता अनुसार रेकी का असली उदगम स्थल भारत है। सहस्रों वर्ष पूर्व भारत में स्पर्श चिकित्सा का ज्ञान था। अथर्ववेद में इसके प्रमाण पाए गए हैं, यह विद्या गुरु-शिष्य परंपरा के द्वारा मौखिक रूप में विद्यमान रही। लिखित में यह विद्या न होने से धीरे-धीरे इसका लोप होता चला गया। ढाई हजार वर्ष पहले बुद्ध ने ये विद्या अपने शिष्यों को सिखाई जिससे देशाटन के समय जंगलों में घूमते हुए उन्हें चिकित्सा सुविधा का अभाव न हो और वे अपना उपचार कर सकें। भगवान बुद्ध की ‘कमल सूत्र’ नामक किताब में इसका कुछ वर्णन है।यहाँ से यह भिक्षुओं के साथ तिब्बत और चीन होती हुई जापान तक पहुँची है। जापान में इसे पुनः खोजने का काम जापान के संत डॉक्टर मिकाओ उसुई ने अपने जीवनकाल १८६९-१९२६ में किया था।इसकी विचारधारा अनुसार ऊर्जा जीवित प्राणियों से ही प्रवाहित होती है। रेकी के विशेषज्ञों का मानना है कि अदृश्य ऊर्जा को जीवन ऊर्जा या की कहा जाता है और यह जीवन की प्राण शक्ति होती है। विशेषज्ञ कहते हैं कि ” की ” हमारे आस-पास ही है और उसे मस्तिष्क द्वारा ग्रहण किया जा सकता है।
रेकी शब्द में रे का अर्थ है वैश्विक, अर्थात सर्वव्यापी ,की का अर्थ ऊर्जा, है। विभिन्न लोगों द्वारा किये गये शोध के अनुसार यह निष्कर्ष निकला है कि इस विधि को आध्यात्मिक चेतन अवस्था या अलौकिक ज्ञान भी कहा जा सकता है। इसे सर्व ज्ञान भी कहा जाता है जिसके द्वारा सभी समस्याओं की जड़ में जाकर उनका उपचार खोजा जाता है। समग्र औषधि के तौर पर रेकी को बहुत पसंद किया जाता है। रेकी की मान्यता है कि जब तक कोई प्राणी जीवित है, ‘की’ अर्थात ऊर्जा उसके गिर्द बनी रहती है। जब ‘की’ अर्थात ऊर्जा उसे छोड़ जाती है, तब उस प्राणी की मृत्यु होती है। विचार, भाव और आध्यात्मिक जीवन भी ‘की अर्थात ऊर्जा के माध्यम से उपजते हैं। रेकी एक साधारण विधि है, लेकिन इसे पारंपरिक तौर पर नहीं सिखाया जा सकता। विद्यार्थी इसे रेकी मास्टर से ही सीखता है, इसे आध्यात्म आधारित अभ्यास के तौर पर जाना जाता है। चिन्ता, क्रोध, लोभ, उत्तेजना और तनाव शरीर के अंगों एवं नाड़ियो मे हलचल पैदा करते देते हैं, जिससे रक्त धमनियों मे कई प्रकार के विकार उत्पन्न हो जाते हैं। शारीरिक रोग इन्ही विकृतियों के परिणाम हैं। शारीरिक रोग मानसिक रोगों से प्रभावित होते है। रेकी बीमारी के कारण को जड़ मूल से नष्ट करती हैं, स्वास्थ्य स्तर को उठाती है, बीमारी के लक्षणों को दबाती नहीं हैं।
रेकी के द्वारा मानसिक भावनाओं का संतुलन होता है और शारीरिक तनावबैचेनी व दर्द से छुटकारा मिलता जाता हैं। रेकी गठियादमाकैंसररक्तचापपक्षाघातअल्सरएसिडिटीपथरीबवासीरमधुमेहअनिद्रामोटापागुर्दे के रोगआंखों के रोग स्त्री रोगबाँझपनशक्तिन्यूनता और पागलपन तक दूर करने मे समर्थ है।

इसके द्वारा विशिष्ट आदर्शो के अधीन रहना होता है। संस्कृत शब्द प्राण इसी का पर्यायवाची है। चीन में इसे ची कहा जाता है। रेकी के विशेषज्ञ नकारात्मक  ऊर्जा को समाप्त कर उसे सकारात्मक ऊर्जा में बदलने पर जोर देते हैं। उपचार करते समय रेकी विशेषज्ञ के हाथ गर्म हो जाते हैं। रेकी का इस्तेमाल मार्शल आर्ट़स विशेषज्ञ भी करते हैं। यह विद्या एक या दो दिन के शिविर में सिखाई जाती है, जिसमें लगभग 4-8  घंटे का समय होता है। इस शिविर में रेकी प्रशिक्षक द्वारा व्यक्ति को सुसंगतता (‘एट्यूनमेंट’  या ‘शक्तिपात’) प्रदान की जाती है। इससे व्यक्ति के शरीर में स्थित शक्ति केंद्र जिन्हें चक्र कहते है, पूरी तरह गतिमान हो जाते हैं, जिससे उनमें ‘जीनव शक्ति’ का संचार होने लगता है।रेकी का प्रशिक्षण मास्टर एवं ग्रैंड मास्टर पांच चरणों में देते हैं।
प्रथम डिग्री
द्वितीय डिग्री
तृतीय डिग्री
मास्टर्स रेकी
रेकी का इतिहास
    भारत देश आध्यात्मिक शक्तियों से संपन्ना देश है, हजारों वर्ष पूर्व भारत में स्पर्श चिकित्सा का ज्ञान था। अथर्ववेद में इसके प्रमाण पाए गए हैं, किंतु गुरु-शिष्य परंपरा के कारण यह विद्या मौखिक रूप से ही रही। लिखित में यह विद्या न होने से धीरे-धीरे इस विद्या का लोप होता चला गया। 2500 वर्ष पहले भगवान बुद्ध ने ये विद्या अपने शिष्यों को सिखाई ताकि देशाटन के समय जंगलों में घूमते हुए उन्हें चिकित्सा सुविधा का अभाव न हो और वे अपना उपचार कर सकें। भगवान बुद्ध की ‘कमल सूत्र’ नामक किताब में इसका कुछ वर्णन है।
19वीं शताब्दी में जापान के डॉ. मिकाओ उसुई ने इस विद्या की पुनः खोज की और आज यह विद्या रेकी के रूप में पूरे विश्र्व में फैल गई है। डॉ. मिकाओ उसुई की इस चमत्कारिक खोज ने ‘स्पर्श चिकित्सा’ के रूप में संपूर्ण विश्व को चिकित्सा के क्षेत्र में एक नई दिशा प्रदान की है।
रेकी सीखने के लाभ
1. यह शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक स्तरों को प्रभावित करती है।
2. शरीर की अवरुद्ध ऊर्जा को सुचारुता प्रदान करती है।
3. शरीर में व्याप्त नकारात्मक प्रवाह को दूर करती है।
4. अतीद्रिंय मानसिक शक्तियों को बढ़ाती है।
5. शरीर की रोगों से लड़ने वाली शक्ति को प्रभावी बनाती है।
6. ध्यान लगाने के लिए सहायक होती है।
7. समक्ष एवं परोक्ष उपचार करती है।
8. सजीव एवं निर्जीव सभी का उपचार करती है।
9. रोग का समूल उपचार करती है।
10. पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करती है।
रेकी की पात्रता
कोई भी व्यक्ति रेकी सीख सकता है,यह व्यक्ति के बौद्धिक, शैक्षणिक या आध्यात्मिक स्तर पर निर्भर नहीं है, न ही इसे सीखने के लिए उम्र का बंधन है। इसे सीखने के लिए वर्षों का अभ्यास नहीं चाहिए न ही रेकी उपचारक की व्यक्तिगत स्थिति के कारण उपचार पर कोई प्रभाव पड़ता है। यह क्षमता रेकी प्रशिक्षक के द्वारा उसके प्रशिक्षार्थी में सुसंगतता (एट्यूनमेंट) के माध्यम से उपलब्ध होती है, इसके प्राप्त होते ही व्यक्ति के दोनों हाथों से ऊर्जा का प्रवाह प्रारंभ हो जाता है और इस तरह वह स्वयं का तथा दूसरों का भी उपचार कर सकता है।
रेकी कैसे कार्य करती है?
यह शरीर के रोगग्रस्त भाग की दूषित ऊर्जा को हटाकर उस क्षेत्र को स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करती है। यह व्यक्ति के तरंग स्तर को बढ़ाती है। उसके प्रभा पंडल को स्वच्छ करती है जिसमें नकारात्मक विचार और रोग रहते है। इस क्रिया में यह शरीर के ऊर्जा प्रवाहों को सुचारु करने के साथ-साथ उन्हें बढ़ाती भी है। इस तरह यह रोग का उपचार करती है।
  रेकी अर्थात ऊर्जा – आध्यात्मिक ईश्वरीय स्पर्श चिकित्सा पद्धति जो व्यक्ति के सभी शुभ विचारों को साकार करके चमत्कारिक ढंग से मन को आश्चर्य तथा आनंद से सराबोर कर देती है. परमात्मा की प्रार्थना में बहुत शक्ति है. इसी शक्ति को जापान में रेकी नाम से संबोधित किया जाता है. वर्तमान समय में मनुष्य चौबीसों घंटे तनाव में गुजारता है. तनाव को दूर करने की सबसे सरल विधियों में रेकी का स्थान सर्वोपरि माना गया है. सामान्य रूप से रेकी एक ऐसी स्पर्श चिकित्सा है जिसमें शारीरिक अंगों को छूकर अथवा बगैर छुए विभिन्न रोगों का उपचार सफलतापूर्वक होता है. चिकित्सा की इस विधा में औषधि के रूप में ब्रह्माण्ड में व्याप्त संजीवनी प्राण ऊर्जा का उपयोग किया जाता है, उपचार की प्रक्रिया में ऊर्जा का प्रवाह रेकी मास्टर के हाथों में होकर रोगी के शरीर में (रोगी की ऊर्जा ग्रहण क्षमता के अनुसार) पहुँचता है एवं कुछ ही समय पश्चात् रोगी व्यक्ति पहले तो स्वस्थ और संयमितता का अनुभव करता है और अंत में उसे आनंद की सुखद अनुभूति होने लगती है.
विश्व के सभी देशों में आज भी मान्यता है कि साधु-संतों के आशीर्वचन, उनका सान्निध्य तथा आशीष पाकर मनुष्य को बीमारियों से मुक्ति सहज ही मिल जाती है. डॉक्टर मिकाओ उसुई को भी पूरा विश्व इसीलिए जानता है कि उन्होंने बिना दवा-गोली इंजेक्शन के मात्र स्पर्श एवं संकल्प शक्ति से जटिलतम रोगों का निदान करने के लिए रेकी स्पर्श चिकित्सा से दुनिया को परिचित कराया, हमारे देश में 1980 से रेकी चिकित्सा जारी है. हालांकि इसे शासकीय मान्यता प्राप्त नहीं है फिर भी देश के शहरों एवं महानगरों में इसका अत्यधिक प्रचार-प्रसार है.
रेकी सीखने के लिए कुछ योग्यताएं आवश्यक हैं -
व्यक्ति शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ हो एवं उसका जीवन प्रेम और सद्भावना से भरा हो.
व्यक्ति के मन में यह विश्वास होना चाहिए कि किसी भी रोग अथवा समस्या के समाधान हेतु मानव के पास ईश्वरीय शक्ति सदैव मौजूद होती है.
रेकी सीखने वालों के विचारों में इमानदारी, सकारात्मकता एवं स्पष्टवादिता होना चाहिए. यह विद्या दुष्ट एवं चालाकों के लिए नहीं है.
रेकी उपचारक उपचार करने के पूर्व डॉक्टर उसुई पर ध्यान लगाकर अपने मन में सच्चे दिल से नीचे लिखी अतिरिक्त प्रार्थना करें तो उसके शरीर एवं हाथों में एक विशिष्ट आध्यात्मिक शक्ति आ जाती है. एवं रोगों को दूर करने में सहायता करती है.
प्रभु मेरा मार्ग दर्शन करें एवं मुझे उपचारक शक्ति प्रदान करें ताकि मैं दीन दुखियों के काम आ सकूं. मैं सबके उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता हूँ. मुझे शक्ति एवं आशीर्वाद दो. मेरा लक्ष्य मानव मात्र की सेवा करना है एवं मैं यह कार्य तभी कर पाऊंगा जब आप मुझे अपना कृपा का अंग मात्र भी प्रदान करेंगेमैं आपको वचन देता हूँ कि आपके द्वारा दी गई शक्ति का उपयोग कभी भी अपने स्वार्थ हेतु नहीं करूंगा एवं इसका दुरूपयोग नहीं होने दूंगा.”

रेकी का प्रशिक्षण रेकी के मास्टर एवं ग्राण्ड मास्टर विभिन्न चरणों में देते हैं –
ये चरण हैं -
1) फ़र्स्ट डिग्री 2) सेकण्ड डिग्री 3) थर्ड डिग्री 4)  मास्टर डिग्री (5) रेकी ग्रांड मास्टर
वैसे देखा जाए तो रेकी का वास्तविक लाभ उन्हें ही सर्वाधिक मिलता है जो सकारात्मक विचारों के साथ पूरी आस्था एवं विश्वास पूर्वक रेकी को ग्रहण करते हैं. रेकी पद्धति में रोग के निदान हेतु दवाओं की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती अर्थात् रेकी स्पर्श चिकित्सा एक सहज सरल और बिना पैसों का इलाज है. रेकी को अपनाकर अपनी और दूसरों की सामान्य तथा जटिल बीमारियों का इलाज व्यक्ति स्वयं भी कर सकता है. यदि रेकी मास्टर की आध्यात्मिक शक्ति में बल है एवं उसके उपचार का ढंग लोगों को पसंद है तो रोगी निश्चित रूप से शीघ्रातिशीघ्र निरोग हो जाता है.
संक्षेप में, रेकी आध्यात्मिक स्पर्श चिकित्सा अपने मूल रूप में एक ध्यान विधि है जो रोगी तथा उपचारक का संबंध सीधे परमात्मा से जोड़ती है.
रेकी एक स्पर्श चिकित्सा है, पर यह अधुरा सच है, सिर्फ पहले चरण के व्यक्ति के लिये ही यह स्पर्श चिकित्सा है, दुसरा चरण सीखने के बाद से ही व्यक्ति आराम से दुरस्थ उपचार कर सकता है | मुख्यतः सात चक्रों के अलावा कुछ चक्र हमारे सर के उपर होते हैं और कुछ पैर के निचे भी | रेकी में मुख्य चक्र के साथ हथेलियों के मध्य में स्थित उर्जा केन्द्रों का भी महत्व है | हथेलियों के इन दो चक्रों के माध्यम से ही रेकी उर्जा का बहाव होता है | बड़े बुजुर्ग को जब हम प्रणाम करते हैं तो वो हमारे सर पर हाथ रख कर आशीर्वाद देते हैं | वो आशीर्वाद और कुछ नहीं अध्यात्मिक ऊर्जा ही है जिसका प्रवाह हथेलियों से होता रहता है | ऐसा नहीं है की रेकी लेने के बाद ही ये चक्र खुलेंगे और ऊर्जा का प्रवाह होगा | किसी भी अध्यात्मिक व्यक्ति के हथेलिओं से निकलती ऊर्जा को महसूस कर सकते हैं | ये ग़लतफ़हमी है की किसी का चक्र बंद है , अगर कोई भी चक्र बंद हो जाएगा तो इंसान जिन्दा नहीं बचेगा | जैसे मणिपुर चक्र पेट , लीवर किडनी को कण्ट्रोल करता है , अगर मणिपुर चक्र बंद हो जाएगा तो ये सब अंग काम करना बंद कर देंगे और व्यक्ति की मृत्यु हो जायेगी | चक्र बंद नहीं होते पूरी तरह बल्कि उनमे ब्लॉकेज होने से उर्जा का प्रवाह ठीक से नहीं हो पाता | अगर किसी का एक चक्र ज्यादा खुला हुआ है तो नीचे / उपर के चक्रों में उर्जा का प्रवाह ठीक से नहीं हो पायेगा और उस चक्र में ज्यादा ऊर्जा जमा हो जाने से व्यक्ति बहुत ज्यादा एक्टिव हो जाएगा | जैसे मणिपुर चक्र को लीजिये , ये हमारे अंदर तेजस्विता को बढाता है , आत्मबल और कार्य क्षमता प्रदान करता है | अगर ये चक्र बहुत ऊर्जावान हो जाए तो व्यक्ति का रवैया आक्रामक हो जाएगा , अपनी बात से टस से मस नहीं होगा , ऐसा कह सकते हैं को बहुत ज्यादा dominate करेगा | कम उर्जा भी ठीक नहीं , ऐसा होने से व्यक्ति में कार्यक्षमता ख़त्म हो जाएगी और आत्मबल घटने से डिप्रेशन में चला जायेगा | इसीलिए चक्रों की उर्जा को संतुलित करना जरूरी है | जितनी उर्जा की जरूरत है उतनी मिले , संतुलन हो और ज्यादा उर्जा को ग्राउंड कर दिया जाए | रेकी चक्र ध्यान से ये ब्लॉकेज को हटा कर , चक्रों को उर्जावान और संतुलित किया जाता है जिससे व्यक्ति का सार्वभौम विकास हो , अध्यात्मिक और सांसारिक जीवन संतुलन में हो |
चक्रों के रंग और स्थान की जानकारी होना बहुत जरूरी है | जैसा की पहले ही बताया गया है की रंग का सम्बन्ध एक निश्चित फ्रीक्वेंसी से होने के कारण एक निश्चित ऊर्जा की मात्रा से है | किस चक्र को कितनी ऊर्जा चाहिए वो उस चक्र से सम्बंधित रंग के गहरे चमकीले होने से है | हम तब तक हीलिंग देंगे जब तक ब्लॉकेज ख़त्म होकर , चक्र अपने रंग में तीव्रता से चमकने ना लगे उसके बाद ज्यादा या कम उर्जा का संतुलन करेंगे |
मानव शरीर मे स्थित  चक्र

(1)सहस्रार, (संस्कृत: सहस्रार, Sahasrāra) शीर्ष चक्र (सिर का शिखर; एक नवजात शिशु के सिर का ‘मुलायम स्थान’)
(2)आज्ञा, (संस्कृत: आज्ञा, Ājñā) ललाट या तृतीय नेत्र (चीटीदार ग्रंथि या तृतीय नेत्र)
(3)विशुद्ध, (संस्कृत: विशुद्ध, Viśuddha) कंठ चक्र (कंठ और गर्दन क्षेत्र)
(4)अनाहत, (संस्कृत: अनाहत, Anāhata) ह्रदय चक्र (ह्रदय क्षेत्र)
(5)मणिपूर, (संस्कृत: मणिपुर, Maṇipūra) सौर स्नायुजाल चक्र (नाभि क्षेत्र)
(6)स्वाधिष्ठान, (संस्कृत: स्वाधिष्ठान, Svādhiṣṭhāna) त्रिक चक्र (अंडाशय/पुरःस्थ ग्रंथि)
(7)मूलाधार, (संस्कृत: मूलाधार, Mūlādhāra) बेस या रूट चक्र (मेरूदंड की अंतिम हड्डी *कोक्सीक्स*)
हर चक्र को तीन मिनट देंगे | इस तरह से सात चक्रों में 21 मिनट लगेंगे |
एक मिनट तक रेकी से प्रार्थना करें की – हे रेकी आप मेरे अमुक ( चक्र का नाम ) के ब्लॉकेज को दूर करें और इसे स्वस्थ करें | और उस चक्र के ब्लॉकेज खुल रहे हैं , नकारात्मकता ख़त्म हो रही है ऐसी भावना करते हुए ऊर्जा देंते रहे
फिर एक मिनट तक रेकी से प्रार्थना करें की – हे रेकी आप मेरे अमुक ( चक्र का नाम ) को उतनी ऊर्जा दें जितने की इसे जरूरत है | और उस चक्र का रंग पूरी तरह गहरा और चमकीला हो रहा है ऐसी भावना करते हुए ऊर्जा दें |
फिर एक मिनट तक रेकी से प्रार्थना करें की – हे रेकी आप मेरे अमुक ( चक्र का नाम ) के कम या ज्यादा उर्जा को संतुलित करिए |
और उस चक्र को ऊर्जा दें
और अंत में रेकी से प्रार्थना करें की – हे रेकी आप मेरे सातों चक्रों की ऊर्जा को संतुलित करिए | रेकी के तीव्र प्रकाश के प्रवाह को पुरे रीढ़ की हड्डी में महसूस करिए|
अब रेकी का धन्यवाद करिए | दोनों हाथों को जोड़ से रगड़िये ,अपनी आखों को ढकिये और धीरे धीरे आखों को खोलिए |
अब आप खुद देखिये की क्या फर्क पडा है | आपके दिल से खुद ये आवाज आएगी – रेकी का धन्यवाद ( Thanks to Reiki) :)
आभार विधि
Attitude of gratitude
1-मैं अपना आभार व्यक्त करता हूँ/करती हूँ।
2-मैं डॉ मिकाओ उसुई का  आभार व्यक्त करता हूँ/करती हूँ।
3-मैं रैकी के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ/करती हूँ।
4-मैं रोगी का आभार व्यक्त करता हूँ/करती हूँ।
5-मैं स्वम अर्थात उपचारक का आभार व्यक्त करता हूँ/करती हूँ।
रेकी के पञ्च नियम/ सिद्धान्त
मात्र आज के दिन ;मैं सभी के प्रति आभारी रहूंगा।
मात्र आज के दिन मैं चिंता नहीं करूंगा।
मात्र आज के दिन मैं क्रोध नहीं करूंगा।
मात्र आज के दिन मैं अपना कार्य पूर्ण लगन से करूंगा।
मात्र आज के दिन मैं सभी जीवों के प्रति आदर व स्नेह प्रदर्शित करूंगा।
1-प्रार्थना
2-प्रेसर अंगुलियों और हथेलियों पर।
3-हथेलियों मे मसाज।
3-दोनों हांथों की झुलाना।
4-रेकी ध्यान-
सहस्रार-अग्र आज्ञा- अग्र विशुद्ध- अग्र अनाहत- अग्र मणिपूर- अग्र स्वाधिष्ठान- अग्र मूलाधार-पश्च मूलाधार- पश्च स्वाधिष्ठान-पश्च मणिपूर-पश्च अनाहत –दोनों कंधे-दोनों हाथ-दोनों हथेलियों।
5-समापन आभार
6- क्रास- मरीज से मानसिक सम्बंध विच्छेद।
……………………………………………………………….
रेकी मास्टर
आचार्य -आर.पी॰पटैल
(अध्यक्ष- भू-धर्म व जन जागरण समिति रजि॰)
एक्युप्रेरिस्ट,ज्यौति विशेषज्ञ  रैकी मास्टर
विवेकानन्द नगर एम.आई.जी-4  दमोह म.प्र.
मो.9300694736.,8109442751,
Mai.Id- astro.rppatel@gmail.com
https://www.youtube.com/watch?v=Dgwbdn8Cdq0
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Thursday, March 16, 2017

ओरा रंग का वर्णन

रंग व्याख्या
ओरा रंग के निम्नलिखित वर्णन आप औरस की व्याख्या में एक सामान्य जानकारी दे सकते हैं. रंग, साथ ही आकार और रंगों के संयोजन ओरा व्याख्या में एक आसन्न भूमिका निभाते हैं कि तथ्य के बारे में पता करें. बाईं ओर महिला निष्क्रिय ऊर्जा इंगित करता है, जबकि दाईं ओर पुरुष सक्रिय ऊर्जा से पता चलता है. विभिन्न वर्गों के अर्थ खंड खंड में समझाया जाता है. इसके अलावा इन रंग परिभाषा बच्चों के लिए लागू नहीं है कि ध्यान में रखना है.
लाल: इच्छा, जीवन शक्ति, शक्ति, जीतने के लिए आग्रह करता हूं, सफलता है, अनुभव, कार्रवाई की तीव्रता, कर, इच्छाशक्ति, नेतृत्व, शक्ति, साहस, जुनून, कामुकता, earthiness, व्यावहारिकता का खेल, संघर्ष, प्रतियोगिता, बल का प्यार , संपत्ति के लिए इच्छा, साहस की भावना, अस्तित्व वृत्ति. विशेष रूप से युवा बच्चों और किशोरों के लड़कों के अधिकांश, चमकदार लाल औरस है.
ऑरेंज: रचनात्मकता, भावनाओं, आत्मविश्वास, एक खुले और दोस्ताना तरीके, सुशीलता, अंतर्ज्ञान या पेट महसूस में दूसरों से संबंधित क्षमता. दूसरों के प्रति एक आत्म बाहर तक पहुँचने और विस्तार करने की क्षमता. कई प्रतिभाशाली बिक्री लोगों, उद्यमियों, और जनता के साथ निपटने के लोग हैं, जो नारंगी औरस है.
पीला: नए विचारों, खुशी, गर्मी, विश्राम के लिए हास्य और मज़ा, आशावाद, बुद्धि, खुलेपन की धूप और उत्साही, हंसमुख, उज्ज्वल, महान भावना. बेहिचक व्यापकता, बोझ, समस्याओं और प्रतिबंध की रिहाई.संगठन के लिए प्रतिभा. आशा और उम्मीद, प्रेरणा. पीले औरस के साथ लोगों को प्रोत्साहित करते हैं और स्वाभाविक रूप से खुद को किया जा रहा से दूसरों का समर्थन, सूरज की तरह वे विकीर्ण और वे भी जटिल अवधारणाओं का विश्लेषण करने के लिए एक महान क्षमता हो सकती है.
ग्रीन: दृढ़ता, जिम्मेदारी और सेवा की दृढ़ता, दृढ़ता, धैर्य, समझ, स्वयं मुखरता, उच्च आदर्शों और आकांक्षाओं, समर्पण, काम और कैरियर पर उच्च मूल्य डालता है. सम्मान और व्यक्तिगत उपलब्धि के लिए महत्वाकांक्षी इच्छा, गहराई से ध्यान केंद्रित किया और अनुकूलनीय. ग्रीन भी विकास की और दुनिया में सकारात्मक बदलाव बनाने पर ध्यान केंद्रित समर्पित माता पिता, सामाजिक कार्यकर्ता, सलाहकारों, मनोवैज्ञानिकों, और अन्य व्यक्तियों का रंग है.
ब्लू: भावना की गहराई, भक्ति, निष्ठा, विश्वास, संवाद करने की इच्छा है. व्यक्तिगत संबंधों पर काफी महत्व रखता है. Empathic. एक सपने देखने वाले हो या कलात्मक क्षमता हो सकती है. संभवत: उनकी खुद से पहले दूसरों की जरूरतों डाल देते हैं और ध्यान, और पल में रहने की क्षमता एवेन्यू सकता है. ब्लू अंदर की ओर ध्यान केंद्रित किया, एकांत, गैर प्रतिस्पर्धी गतिविधियों का आनंद ग्रहणशील और इच्छा एकता, शांति, प्रेम और दूसरों के साथ रिश्तों में स्नेह हो सकता है, सहज, भावनात्मक रूप से संवेदनशील हो सकता है. वे एक शांत और शांत वातावरण की जरूरत है. आप सत्य, न्याय और सब कुछ में सुंदरता की तलाश में कई नीले कलाकारों, कवियों, लेखकों, संगीतकारों, दार्शनिकों, गंभीर छात्रों, आध्यात्मिक चाहने वालों, और लोगों को मिल जाएगा.
बैंगनी या बैंगनी: मूल, जादुई, अक्सर मानसिक क्षमताओं, असामान्य करिश्मे और आकर्षण है, अपरंपरागत हो जाता है, अपने सपनों को बनाने के लिए असामान्य क्षमता सच हो, या भौतिक संसार में प्रकट अपनी इच्छाओं, आकर्षण और खुशी दूसरों के लिए चाहते हैं और कर सकते हैं आसानी से चेतना के उच्च विमानों के साथ कनेक्ट. दूसरों के सनकीपन की सहिष्णु, चंचल. संवेदनशील और दयालु. बैंगनी औरस जो लोग दूसरों में कोमलता और दया की सराहना करते हैं. विशेष रूप से व्यावहारिक नहीं है, वे अपने स्वयं के निर्माण के लिए एक सपनों की दुनिया में जीने के लिए पसंद करते हैं. आप कई "बैंगनी या बैंगनी" मनोरंजन, फिल्म सितारों, स्वतंत्र विचारक, दूरदर्शी, क्रांतिकारियों, और नहीं तो एकवचन और चुंबकीय व्यक्तियों मिल जाएगा. डार्क बैंगनी व्यक्ति आध्यात्मिक खुद भूमि पर समय या खुद की जरूरत है कि, शायद उनके जीवन का प्रभार लेने के लिए, या करने की आवश्यकता का संकेत मिलता है.
व्हाइट: आध्यात्मिक प्रेरित, खुला और परमात्मा, या आध्यात्मिक दुनिया को स्वीकार करने की क्षमता. सब है के साथ विलय कर सकते हैं. शायद सांसारिक मामलों या महत्वाकांक्षा से उदासीन है. इनर रोशनी, लौकिक ज्ञान सफेद ऊर्जा विशेषताएँ. युवा बच्चों, ऊर्जा कार्यकर्ताओं, और तीव्रता से ध्यान लोग हैं, जो अक्सर उनके औरस में सफेद चमकदार दिखाई देगा. आम तौर पर, सफेद अक्सर वयस्कों के औरस में प्रकट नहीं होता.
कभी कभी बहुत अजीब और रहस्यमय छवियों, पैटर्न, और आकार स्पष्टीकरण अवहेलना जो ओरा फोटो पर दिखाई देते हैं. यह जीवन का महान रहस्य का हिस्सा है. डॉ. थेल्मा मॉस 1970 में खोज की, जो "प्रेत पत्ता प्रभाव" याद है? आप इस रूप में बस के रूप में अकल्पनीय और शानदार एक छवि मुठभेड़ हो सकता है! अपनी ओरा रोमांच का आनंद लें!

क्या है आभामंडल ,औरा ,प्रभामंडल ,प्राणशक्ति या विद्युत शक्ति

क्या है आभामंडल ,औरा ,प्रभामंडल ,प्राणशक्ति या विद्युत शक्ति        

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औरा का लेटीन भाषा मे अर्थ बनता है "सदैव बहने वाली हवा"। औरा इसी अर्थ के मुताबिक यह सदैव गतिशील भी होती है। विभिन्न देशो मे इसे विभिन्न नामो से जाना जाता है, लेकिन सबसे ज्यादा प्रचलित नाम औरा, प्रभामंडल, या ऊर्जामंडल है।
प्राणियों का शरीर दो प्रकार का होता है - 1. स्थूल शरीर  2. शूक्ष्म शरीर
स्थूल शरीर जन्म के बाद जो शरीर सामने दिखाई देता है, वह स्थूल शरीर होता है, इसी स्थूल शरीर का नाम दिया जाता है, इसी के द्वारा संसारी कार्य किये जाते है, इसी शरीर को संसारी दुखों से गुजरना पडता है और जो भी दुख होते हैं | भौतिक शरीर के अतिरिक्त प्रकाषमय और ऊर्जावान एक शरीर और होता है जिसे सूक्ष्म शरीर अथवा आभामण्डल { औरा }कहते हैं।   हमारे शरीर के चारों तरफ जो ऊर्जा का क्षेत्र है वही सूक्ष्म शरीर है। सूक्ष्म शरीर ने हमारे स्थूल शरीर को घेर रहा है। इसे जीवनी शक्ति या प्राण शक्ति भी कहते हैं इसका कार्य सारे शरीर में एवं सूक्ष्म नाडियों में वायु प्रवाह को नियंत्रित करना तथा सूक्ष्म ऊर्जा प्रदान कर शरीर को क्रि्रयाशील रखना है प्राण के निकल जाने पर शरीर मृत हो जाता है एवं प्राण के कमजोर होने पर शरीर कमजोर होता जाता है तथा बीमारियों से लडने की शक्ति समाप्त होने लगती है।
 अपने इष्ट देव की मूर्ति या पोस्टर सभी मनुष्य अपने घर या कार्यस्थल पर अवश्य रखते हैं। इन मूर्ति या पोस्टर में जो भी देव हैं उनके मस्तिष्क के बराबर पीछे की ओर सप्तरंगीय ऊर्जा तरंगे निष्कासित होती रहती है व एक गोलीय चक्र सा प्रतिबिंब रहता है वही उनका आभामण्डल या औरा चक्र होता है। यह आभामण्डल जीव मात्र- मनुष्य, जीव-जंतु, पशुओ, पेड़-पौधे, पदार्थों के इर्द-गिर्द एक प्रकाश पुंज रहता है। प्रत्येक मनुष्य का अपना एक आभामण्डल या औरा होता है। जिसके कारण से ही दूसरे अन्य मनुष्य उससे प्रभावित होते हैं। यह आभा मनुष्य के संपूर्ण शरीर से सतरंगी किरणों के रूप में अंडाकार रूप में उत्सर्जित होती रहती है। 
हमारे शास्त्रों में वर्णित जो तथ्य हैं जैसे तुलसी की पूजा, पीपल की पूजा, ब़ड का महत्व, सफेद आक़डे का महत्व, गाय को पूजनीय बताना, आखे, नमक का महत्व आदि कई बातें सहज किवदन्तियां या कथानक की बातें नहीं हैं, ये सब वैज्ञानिक सत्य पर आधारित हैं। इन सबकी ऑरा एनर्जी +ve ऊर्जा इतनी अधिक है कि ये सभी हमें सुरक्षा प्रदान करते हैं। शारीरिक और मानसिक तौर पर हमें स्वस्थ रख सकते हैं। इनके सान्निध्य में आभा मण्डल का विकास होता है। वृक्षों में शास्त्रोक्त जिनका महत्व दर्शाया गया है जैसे ब़ड इसकी ऑरा एनर्जी 10.1 मीटर है, कदम्ब पे़ड की 8.4 मीटर है, तुलसी की 6.11 मीटर, नीम की 5.5 मी., आंवला की 4.3 मी., आम की 3.5 मी. पीपल की 3.5 मी., फूलों में ओलिएन्डर 7.2 मी., कमल 6.8 मी., गुलाब 5.7 मी., मेरीगोल्ड 4.7 मी., लिलि 4.1 मी. एवं आश्चर्यजनक तौर पर सफेद आक़डे के फूल (जो शिव भगवान को चढ़ाए जाते हैं) की ऑरा 15 मी., गाय के घी की 14 मी., गोबर की 6 मी., पंचकर्म की 8.9 मी., गाय के दूध की 13 मी., गाय दही की 6.9 मी., गाय की पूजनीयता स्पष्ट है। इसी तरह पूजन सामग्री में नारियल का महत्व इसकी ऑरा एनर्जी 10.5 मी. होने से है। अक्षत चावल 4.9 मी., कपूर 4.8 मी., क्रिस्टल नमक 4.8 मी., सफेद कोला 8.6 मी., कुमकुम 8 मी., अगरबत्ती सुगंध के अनुसार 5-15 मी.। जिनका महत्व हमारे दैनिक जीवन में है उन सबका ऑरा एनर्जी अधिक होने की वजह से उन्हें धर्मशास्त्रों में उल्लेखित किया है।

आभा मंडल { औरा } का बीमारियो से सम्बन्ध -
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वास्तव मे यह प्राणी के शरीर से निकलने वाली प्रज्वलित शक्ति किरणे है जिसकी ऊर्जा हर व्यक्ति में रहती है। इस प्रभामंडल का संचालन हमारे शरीर के 7 चक्र करते है, और ये चक्र हमारी मानसिक शारीरिक, भावनात्मक इत्यादि कई कडियो से जुडकर औरा के रूप मे हमारे वर्तमान वक्त के दर्पण को तैयार करते है। जिसे देखकर और उसमे जरूरत के अनुसार बदलाव लाकर हम आने वाली, या तत्कालिक समस्याओ से निजात पा सकते हैं।                 

इसको संचालित करने वाले चक्र हैं-
1. मूलादार चक्र- इसका रंग लाल है और इसका सम्बन्ध हमारी शारीरिक अवस्था से होता है, इस चक्र के ऊर्जा तत्व मे असंतुलन , रीढ की हड्डी मे दर्द होना, रक्त और कोशिकाओ पर तथा शारीरिक प्रक्रियाओ पर गहरा असर डालता है। 
2.स्वधिष्ठान चक्र- इसला रंग नारंगी है और इसका सीधा संबन्ध प्रजनन अंगो से है, इस चक्र के ऊर्जा असंतुलन के कारण इंसान के आचरण, व्यवहार पर असर पडता है।
3.मणिपुर चक्र- इसका रंग पीला है और यह बुद्धि और शक्ति का निर्धारण करता है, इस चक्र मे असंतुलन के कारण व्यक्ति अवसाद मे चला जाता है, दिमागी स्थिरता नही रह जाती।
4. अनाहत चक्र- इसका रंग हरा है और इसका संबन्ध हमारी प्रभामंडल की शक्तिशाली नलिकाओ से है, इसके असंतुलित होने के कारण, इसान का भाग्य साथ नही देता, पैसो की कमी रहती है, दमा, यक्ष्मा और फेफडे से समबन्धित बिमारीयों से सामना करना पड सकता है।
5. विशुद्ध चक्र -इसका रंग हल्का नीला है और इसका सम्बन्ध गले से और वाणी से होता है, इसमे असंतुलन के कारण वाणी मे ओज नही रह पाता, आवाज ठीक नही होती,टांसिल जैसी बीमारियो से सामना करना पडता है।
6. आज्ञा चक्र- गहरा नीले रंग का ये चक्र दोनो भौ के बीच मे तिलक लगाने की जगह स्थित है, इसका अपना सीधा सम्बन्ध दिमाग से है, इस चक्र को सात्विक ऊर्जा का पट भी मानते है, मेरा ये मानना है कि अगर परेशानियाँ बहुत ज्यादा हो तो सीधे आज्ञा चक्र पर ऊर्जा देने से सभी चक्रो को संतुलन मे लाया जा सकता है।
7. सहस्रार चक्र- सफेद रंग से सौ दलो मे सजा ये चक्र सभी चक्रो का राजा है, कुडलनी शक्ति जागरण मे इस चक्र की अहम भूमिका है, आम जिन्दगी मे यह चक्र कभी भी किसी मे सम्पूर्ण संतुलन मे मैने नही देखा है, वैसे ये पढने मे आया है कि, जिस व्यक्ति मे यह चक्र संतुलित हो वो सम्पूर्ण शक्तियों का मालिक होता है।
प्रभामंडल को ऊर्जामान करके उपस्थित सभी विकारो को दूर किया जा सकता है। इन्सान की व्यक्तिगत अच्छाइयों, कर्मो से आभा मण्डल विकसित होता है। सद्पुरूषों, महापुरुषों , विशेषज्ञों के आभा मण्डल 30 से 50 मीटर तक पाये गये हैं।

आभा मंडल की कमी के कारण-

हमारे जीवन में भौतिक सुख-सुविधा के साधनों में- मोबाईल, इलेक्ट्रिक एवं इलेक्ट्रोनिक्स साधन है ये एक मैग्नेटिक ऊर्जा का निर्माण कर विकिरण पैदा करते हैं। मोबाईल, फ्रीज, एसी, टी.वी., कंप्यूटर आदि अन्य सभी से नेगेटिव ऊर्जा निकलती है जो हमें नुकसान पहुंचाती रहती है। यह सत्य है कि आभामण्डल, स्प्रिट एनर्जी आध्यात्मिक ऊर्जा व नकारात्मक ऊर्जा से यह तीसरी मैग्नेटिक ऊर्जा का प्रभाव मन्द गति होने की वजह से हमें प्रतीत नहीं होता है। धीरे-धीरे इस ऊर्जा का प्रभाव हमारे
शरीर व मन-मस्तिष्क पर होता रहता है।इनके अलावा भी घर, आॅंफिस, दुकान, फैक्ट्री में भी नकारात्मक ऊर्जा का एक कारण वास्तु दोष भी है। यदि भवन, आॅंफिस, व्यवसाय स्थल वास्तु के नियमों में नहीं है तो उससे भी नेगेटिव ऊर्जाओं का प्रभाव बना रहता है।काम, क्रोध, मोह, लोभ, मद, अहंकार छः मनुष्य के शत्रु हैं। व्यक्ति द्वारा इन छः कर्मों में संलग्न होने से आभामण्डल क्षीण या कम होता जाता है। हम निरंतर एक दूसरे को भला बुरा कहते रहते है। एक दूसरे को डाँटते-फटकारते रहते है। निरंतर अपने नकारात्‍मक भाव व विचार क्रोध-आक्रोश भय चिंता,विवशता आदि-आदि दूसरों को संप्रेषित करते रहते है।  आभामण्डल की ऊर्जा तरंगं टूट जाती है तथा आभामण्डल के कमजोर होते ही व्यक्ति में सोचने-समझने की शक्ति भी क्षीण हो जाती है। एक साधारण इंसान का औरा या आभामण्डल 2 से 3 फीट तक माना जाता है। आभामण्डल का आवरण इस माप से नीचे जाने पर व्यक्ति मानसिक व भौतिक रूप से विकृत हो जाता है या टूटने लगता है। इस स्थिति में उसका आत्म बल भी कम हो जाता है। व्यक्ति की यह स्थिति जीवन में कष्ट या दुःख वाली कहलाती है। मृत व्यक्ति का औरा 0.5 या 0.6 रह जाता है।


आभा मण्डल सीधा अपने कर्मो से जु़डा रहता है। काम-क्रोध, मोह-माया, झूठ आदि जो मानव स्वभाव की प्रकृति के विपरीत हैं, उनमें संलग्न होने से आभा मण्डल क्षीण हो जाता है। एक साधारण स्वस्थ इंसान जिसका आभा मण्डल 2.8 से 3 मीटर तक माना जाता है, इससे भी नीचे जाने लगता है तब मानसिक एवं भौतिक तौर पर बीमार होकर मृत्यु की तरफ बढ़ता रहता है। तब मृत्यु पर ऑरा 0.9 मीटर जो मिट्टी या पंचभूत की अवस्था में पहुंच जाता है। आभा मण्डल के विकास के लिए हम धार्मिक स्थानों पर नियमित पूजा-पाठ, मन्त्रोच्चार, सत्संग आदि से सकारात्मक होते जाते हैं एवं जीवन में गुणात्मक परिवर्तन आने लगता है। वहीं गलत साहित्य, आधुनिक तथाकथित नाच-गाने, फास्टफूड, कल्चर से negative  वातावरण, negative  विचार,विपरीत आहार से सब सीधे आपका आभा मण्डल का ह्रास करते हैं इसलिए यह घटता-बढ़ता रहता है। अगर आप अपना आभा मण्डल विकसित करते हैं तो सही समय पर सही निर्णय लेकर सही सलाहकार ढूंढ लेंगे एवं सही राय से आप सही दिशा में कार्य करेंगे।
दिव्य आभामण्डल में नित्य अभिवृद्धि के लिए हमारे धार्मिक साहित्य वेद-पुराणों में पूजा-पाठ, इष्ट अराधना, अनुष्ठान, यज्ञ तथा त्राटक योग के अभ्यास द्वारा व्यक्ति अपने गिरते हुए औरा या आभामण्डल में वृद्धि कर सकता है। आभामण्डल में वृद्धि का कर्म नित्य रहना चाहिये। मेरे शोध के अनुसार प्रातः काल नित्य 15 मिनट तक ओमकार का ध्यान या नाद योग करने से औरा मजबूत होता है। धार्मिक तीर्थ स्थल, नियमित पूजा पाठ, इष्ट अराधना, मंत्रोचार, योग, प्राणायाम, कपालभाती, आसन, गायत्री मंत्र , ओउम मंत्र का जाप , सत्संग आदि से सकारात्मक ऊर्जा से आभा मण्डल का विकास किया जा सकता है।



आभा मंडल की उपस्थिति के वैज्ञानिक प्रमाण -
रूस के वैज्ञानिक सेम्योन कार्लिअन ने सन 1939 में एक ऐसी फोटोग्राफी  का अविष्कार कियाजिसमे माध्यम से किसी की व्यक्ति के आभा मंडल { औरा } की फोटो ली जाती सकती है | और 6महीने पहले से ही ये बताया जा सकता हैकि सम्बंधित व्यक्ति किस बीमारी से ग्रसित होने वालाहै | ऐसे दुनिया में इलेक्ट्रोफोटोग्राफी ,,कोरोना डिस्चार्ज फोटोग्राफीबायो-इलेक्ट्रोग्राफी , गैसडिस्चार्ज विसुअल  , इलेक्ट्रोफोटोनिक इमेजिंग जैसे विभिन्न नामों से जाना जाता है |  परन्तुसबसे लोकप्रिय इसका नाम कार्लिअन फोटोग्राफी है |

आस्ट्रेलिया के विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक सर जाँन मूर्री एवं डारिक्सेन का कहना है कि यद्यपि वेअभी वास्तविक औरा नहीं देख पाये हैं किन्तु उनके यन्त्रों में स्पार्क्स आते हैं जो प्राण शक्ति केप्रमाण में बदले हुए होते हैं। उन्होंने दुःखीसुखीशराबी आदि के ऊपर प्रयोग करके सिद्ध किया हैकि पीड़ितप्रफुल्लितदवा पिये हुयेशराब पिये हुयेउद्विग्न व्यक्ति का औरा अवश्य प्रभावितहोता है। 



 एनर्जी  { औरा } हीलिंग थेरेपी पेन्डेन्ट  कैसे काम करता है -
मानव शरीर पांच तत्वों वायु , जल ,अग्नि , मिटटी ,और आकाश से मिलकर बना है | ये पांचो तत्व मिलकर हमारे शरीर में मौजूद वात,पित्त और कफ को संतुलित बनाये रखते है | इन तीनो के संतुलित रहने पर ही हम स्वस्थ रहते है | लेकिन जब इन तीनो में से किसी भी एक का संतुलन बिगड़ जाता है तब हम बीमार हो जाते है , मतलब असंतुलन बीमारी का संकेत है | एनर्जी हीलिंग थेरेपी पेन्डेन्ट शरीर में इनकी मात्रा को प्राकृतिक तरीके से संतुलित करता है |                                                                        

इसी प्रकार शरीर में उपस्थित सात चक्रो में से किसी भी चक्र  के आभा मंडल { प्राण ऊर्जा } में असंतुलन से व्यक्ति उस चक्र से सम्बंधित व्याधियों से ग्रसित हो जाता है | एनर्जी हीलिंग थेरेपी पेन्डेन्ट सम्बंधित चक्र में प्राण ऊर्जा का संतुलन स्थापित करके व्यक्ति की बीमारी को ठीक करता है और आगामी बीमारियो से भी बचाव करता है |
मानव शरीर ऊर्जा से ही संचालित होता है शरीर का गतिमान होना , रक्त संचरण , मानव मस्तिष्क द्वारा विभिन्न आंगो को निर्देश देना , आदि सब कुछ प्राणिक ऊर्जा से ही संभव है | इसी प्राणिक ऊर्जा का संचार एनर्जी हीलिंग थेरेपी पेन्डेन्ट द्वारा किया जाता है |
शरीर में पाये जाने वाले 24 खनिज पदार्थो के अलावा चिकित्सा में प्रयुक्त होने वाले अनेक खनिज पदार्थो का इस पेन्डेन्ट को बनाने में प्रयोग किया गया है | जो शरीर में किसी भी पदार्थ की कमी को स्वयं पूरा कर देते है और ये सब प्राकृतिक तरीके से होता है फलस्वरूप इन पदार्थो से शरीर की बीमारिया दूर होती है और शरीर पूर्णता स्वस्थ हो जाता है |
मानव शरीर में 70 प्रतिशत पानी होता है , इस प्रकार  शरीर में पानी की उपयोगिता किसी से छुपी हुयी नहीं है | एनर्जी हीलिंग थेरेपी पेन्डेन्ट पीने के पानी को कीटाणु मुक्त करके उसमे प्राणिक ऊर्जा का समावेश करता है ,जिससे शरीर के विषैले पदार्थ बाहर निकल जाते है , और शरीर बीमारी मुक्त, स्वस्थ और मजबूत बनता है |

एनर्जी  { औरा } हीलिंग थेरेपी पेन्डेन्ट  के चमत्कारिक प्रभाव –
एनर्जी हीलिंग थेरेपी पेन्डेन्ट मानव शरीर से जहरीले पदार्थो को निकालकर , कोशिकाओ को  अधिक से अधिक ऑक्सीजन की पूर्ति करके , शरीर में वात, पित्त, कफ का संतुलन बनाकर , शरीर में प्राणिक ऊर्जा { आभा मंडल / औरा } का निर्माण करके, शरीर में उपस्थित खनिज पदार्थो की मात्र को संतुलित करके ,शरीर में नयी -नयी कोशिकाओ का निर्माण करके और सभी तरह के विकिरण से रक्षा करके निम्न लिखित बीमारियो में अत्यधिक लाभदायक है -
    *  थकान {Tiredness} - मानव मस्तिष्क के अंदर अधिक मात्रा में सेरोटोनिन के उत्सर्जन से        व्यक्ति थकान महसूस करता है  | एनर्जी { औरा } हीलिंग थेरेपी पेन्डेन्ट मस्तिष्क के अंदर       सेरोटोनिन की मात्रा को संतुलित करता है | सभी कोशिकाओ में रक्त संचार बढ़ने से व्यक्ति         तरोताजा महसूस करने लगता है |        
    * कब्ज {Constipation}
    *  ह्रदय रोग {Heart disease}
    *  हाई ब्लड प्रेशर {Hypertension}
    * मधुमेह  {Diabetes}
    * तनाव  {Stress}
    * निम्न रक्त चाप {Hypotension}
    * जोड़ो में दर्द {Sore Muscles / Joints}
    * हड्डी का दर्द  {Bone pain}
    * मिर्गी  {Epilepsy}
    * गठिया {Gout}
    * घाव  {Surgical wounds}
    * आर्थराइटिस  {Arthritis}
    * त्वचा रोग {Skin Diseases}
    * माइग्रेन {Migraine} - मानव मस्तिष्क के अंदर अधिक मात्रा में सेरोटोनिन के उत्सर्जन से          व्यक्ति माइग्रेन सिरदर्द से पीड़ित हो जाता है | एनर्जी { औरा } हीलिंग थेरेपी पेन्डेन्ट              मस्तिष्क के अंदर सेरोटोनिन की मात्रा को संतुलित करता है |
    *  साइनस {Sine / sinus}
    * एग्जिमा  {Eczema}
    * गुप्त रोग  {Erectile dysfunction}
    *  मोटापा {Obesity}
    *  नपुंसकता {Impotence}
    * स्मरण शक्ति का लोप {Insomnia}
    *  दमा {Asthma}
    * सोचने की शक्ति का लोप  {Poor Power of Mind}
    *  रक्ताल्पता {Anemia}
    *  आँखों का धुंधलापन {Eyes Blur}
    * ऑस्टियोपोरोसिस {Osteoporosis}

    *  शरीर में सूजन  {Swelling}



अन्य लाभ - 
* जोड़ो के दर्द व माँसपेशियों के दर्द को दूर करने में सहायक है |
* काम शक्ति को बढ़ाकर उर्जा का संचार करता है |
* एकाग्रता व ध्यान बढ़ाने में सहायता करता है |
* शारीरिक शक्ति व उत्साह को बढ़ाता है |
* थकान एवम् मानसिक परेशानियों को दूर करता है |
* सरवाइकल के दर्द को कंट्रोल करता है |
* पीठ दर्द व मासिक दर्द को दूर करने में सहायक है |
* हमारे शरीर में पानी की गुणवता को बढ़ाता है |
* पाचन शक्ति में वृद्धि करता है |
* रक्त-चाप (ब्लड-प्रेशर) को ठीक करता है. .
*  अच्छी व तनाव मुक्त नींद लाने में सहायक् है |
* शुगर के मरीज़ो के लिए अत्यन्त लाभदायक है. .
* कैंसर उत्पन्न करने वाली खराब कोशिकाओं को  शरीर से बाहर करता  है |
* मानव की रक्त कोशिकाओं को आक्सीजन प्रदान करता है |
*  शारीरिक एवम् मानसिक तनाव दूर करने में सहायता करता है |
* मोबाइल फोन, टी. वी. , कंप्यूटर, माइक्रोवेव, वॉशिंग मशीन, डी. वी. डी., वेक्यूम क्लीनर, इंटरनेट बिजली की     तारें, मनुष्य के शरीर पर लगातार इलैक्ट्रो मेग्नेटिक तरंगों से हमला करती रहती हैं जिसका हमें पता भी नही     चलता. आज के इस आधुनिक युग में हम इन तरंगों से बच नही सकते, परंतु हम इन तरंगों के कुप्रभाव से         खुद को बचा सकते हैं. यह इन तरंगों के कुप्रभाव को निष्क्रिय कर देता है |
*  फ़्रिज़ में रखने से खाने पीने की चीज़े ताज़ा बनी रहती है और इनमें शक्ति के कण बने रहते है |
*  सोते समय अपने तकिये के नीचे रखने से नींद अच्छी व तनाव मुक्त आती है , सिगरेट स्वास्थ्य के लिए             हानिकारक है, लेकिन सिगरेट पीने वालो के लिए यह बहुत लाभदायक है क्योकि सिगरेट को थोड़ी देर               पेन्डेन्ट    पर रखने से सिगरेट में निकोटिन स्तर कम हो जाता है |
 * D. N. A. की क्षति रोकता है|
*  कोशिकाओं को  कैंसर से लड़ने में मदद करता है |
* BLOOD PRESSURE को सामान्य रखने में मदद करता है |
* नेत्र की ज्योति को बढ़ाता है |
* सुजन, जलन, घाव और खुजली को ठीक करता है |
*  सिगरेट और नशीले पदार्थो की आदत को खत्म करता है |
* रक्त संचार को बढाता है |
* इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है |
*  सभी प्रकार के BACTARIA  और VIRUS  को  खत्म करता है |
* कोशिकाओं का पोषण और शराब आदि की लत में फायदा करता है |
* कोशिकाओं की पारगम्यता बढाता है |
* शरीर  की ऊर्जा शक्ति को बढाता है |
* BLOOD PRESSURE को सामान्य रखने में मदद करता है |
* चाय और कॉफी के स्वाद में सुधार करता है |
* पानी को शुद्ध करता है |
*  खाने-पीने की चीज़ो में खनिज पदार्थो  व विटामिनस को बनाए रखता है | केमिकल वाले फलों और सब्जियों       को पेन्डेन्ट द्वारा चार्ज किये गए पानी से धोने से उनका दुष्प्रभाव समाप्त हो जाता है |
*  खाने के साथ पेन्डेन्ट  दवारा किया गया एनेरजाईड पानी पीने से दाँतों की सभी प्रकार की बीमारियाँ तो दूर        होती ही है साथ ही साथ बालों का भी विकास होता है |
*  शरीर में कोलेस्ट्रोल की मात्रा को संतुलित रखता है |
* शरीर की  दुर्गन्ध का नाश करता है
*  यह आप के साथ-साथ आपके आस-पास के वातावरण को भी प्रभावशाली बनाए रखता है |
उपयोग के तरीके :- 
* इस अद्भुत चमत्कारी एनर्जी हीलिंग थेरेपी पेन्डेन्ट को आप गले में पहन सकते है | इसको पहनते ही आपको       तुरंत लाभ होने लगता है | शरीर में तुरंत एक नयी ऊर्जा  के संचार का आभास होने लगता है |
 *  चेहरे की त्वचा में नई चमक लाने के लिए इसे चेहरे पर घुमाये |
*   कमरे के वातावरण को प्रभावशाली बनाने के लिए इसे कमरे के कोनों पर घुमाये |
*  शरीर को स्वस्थ रखने के लिए शरीर के 7 चक्र पर इसे 3 से 5 बार घड़ी के दिशा में घुमाये |
*  शरीर में शक्ति के प्रवाह के लिए इसे पैर के अंगूठे व उंगलियों पर 3 बार घुमाये व दवायें |
*  दर्द हो रहे भाग पर एनर्जी हीलिंग थेरेपी पेंडेंट  को दस मिनिट तक रखें |
* सुबह आधा लीटर पानी के नीचे इसे रखे या पानी में इसे डाल दे ,20 मिनिट बाद वह पानी एनर्जी से परिपूर्ण हो    जायेगा, इसके बाद पानी के सामने हाथ जोड़कर उसे धन्यबाद कहे , और पूरा पानी पी जाये , इसके बाद एक       घंटे तक कुछ भी न खाए और न ही चाय -कॉफी या दूध ले | ऐसा करने से शरीर के हर अंग को अद्भुत ऊर्जा          मिलेगी और शरीर से सारे जहरीले पदार्थ और गैसे बाहर निकल जाएगी |
* गठिया , साइटिका, या सूजन होने पर उस अंग पर पेन्डेन्ट को घुमाये और सम्बंधित जगह पर इसे बांध             दे,एक दिन में सब ठीक हो जायेगा |
* जलन , घाव या त्वचा सम्बन्धी रोगो में इस पेन्डेन्ट द्वारा चार्ज किये गए पानी द्वारा दिन में 3 -4 बार धोने से       तत्काल लाभ मिलता है |

एनर्जी  { औरा } हीलिंग थेरेपी पेन्डेन्ट के प्रयोग {Experiments }-
 अनेक परीक्षणों के माध्यम से आप एनर्जी हीलिंग थेरेपी पेन्डेन्ट की सत्यता का पता लगा सकते है जिनमे से कुछ निम्न लिखित है -
1.लचीलापन परीक्षण {Flexibility Demonstration }-शरीर के अंगो में लचीलापन

                                                     

युवावस्था और कठोरता वृद्धावस्था का परिचायक है | शरीर में जितना ज्यादा लचीलापन रहेगा , शरीर उतना अधिक शक्तिशाली , स्फूर्ति , निरोगी और ऊर्जावान रहेगा | एनर्जी हीलिंग थेरेपी पेन्डेन्ट को पहनते साथ ही तुरंत शरीर में 30 % लचीलापन आ जाता है | इस पेन्डेन्ट को पहनने के बाद यह बढ़ती जाती है | इस प्रकार व्यक्ति  को युवा बनाये रखने में यह बहुत उपयोगी है |


2.ऊर्जा प्रवाह { Energy Flow } - प्राणी के शरीर से निकलने वाली प्रज्वलित शक्ति किरणे है जिसकी ऊर्जा हर व्यक्ति में रहती है। इस प्रभामंडल का संचालन हमारे शरीर के 7 चक्र करते है, और ये चक्र हमारी मानसिक शारीरिक, भावनात्मक इत्यादि कई कडियो से जुडकर औरा के रूप मे हमारे वर्तमान रूप को


 प्रदर्शित करते है | हमारे शरीर में जो ऊर्जा का क्षेत्र है वही सूक्ष्म शरीर है।इसे जीवनी शक्ति या प्राण शक्ति भी कहते हैं इसका कार्य सारे शरीर में एवं सूक्ष्म नाडियों में वायु प्रवाह को नियंत्रित करना तथा सूक्ष्म ऊर्जा प्रदान कर शरीर को क्रियाशील  रखना है | इसकी कमी से शरीर अनेक बीमारियो का घर बन जाता है | और व्यक्ति को अवसाद और निराशा घेर लेती है | उसके जीवन से उमंग और उत्साह समाप्त होने लगती है | एनर्जी हीलिंग थेरेपी के पहनने के तुरंत बाद शरीर में नयी ऊर्जा का संचार होता है , जिससे अनेक बीमारियो ठीक होने लगती है | और जीवन में आशा और उत्साह का संचार होता है | सभी बिगड़े कार्य बनने लगते है | कार्लिअन फोटो ग्राफी द्वारा आप इसका पता लगा सकते है |


3. बर्फ पर परीक्षण { ICE CUBE Experiment } - इस परीक्षण के लिए आपको दो समान आकर के बर्फ के टुकड़े लेने पड़ेंगे , एक टुकड़े को एनर्जी हीलिंग थेरेपी पेन्डेन्ट के ऊपर रखे , और दूसरे को थोड़ा दूर रखे | 10 मिनिट पश्चात आप देखेगे की एनर्जी हीलिंग थेरेपी पेन्डेन्ट पर रखे गए बर्फ का टुकड़ा तेजी से पिघल गया है, इससे यह सिद्द होता है कि पेन्डेन्ट से गुप्त एनर्जी लगातार निकल रही है | जो शरीर को लगातार ऊर्जा प्रदान करती है, शरीर के सभी अंगो का सुचारू रूप से सञ्चालन करती है | साथ ही शरीर पर होने वाले वायरस और बैक्टीरिया के आक्रमण से रक्षा करती है |

4.स्थिरता  परीक्षण  {Stability Demonstration} -किसी भी व्यक्ति का शरीर तभी


तक स्वस्थ रह सकता है जब तक उसमे सभी पदार्थो का संतुलन बना रहे | साथ ही शरीर के सभी अवयवो में भी संतुलन बना रहे | एनर्जी हीलिंग थेरेपी पेन्डेन्ट तुरंत शरीर के सभी अंगो में सामंजस्य स्थापित करके शरीर को संतुलित बनता है | इसका परीक्षण आप चित्रानुसार कर सकते है, किसी व्यक्ति के दोनों हाथ बगल में पुरे फैलाकर एक पैर पर खड़ा करे फिर एक हाथ को दबाये वो एक तरह गिरने लगेगा , फिर एनर्जी हीलिंग थेरेपी पेन्डेन्ट पहनाकर यही प्रक्रिया दोबारा करेंगे , तो उसका शरीर संतुलित रहेगा , और नहीं गिरेगा |

5. संतुलन परीक्षण {Balance Demonstration} - प्रकृति सहित सभी जीव जन्तुओ के शरीर में प्रत्येक पदार्थ एक निश्चित अनुपात में पाया जाता है , किसी पदार्थ की कमी या अधिकता शरीर या प्रकृति में भयंकर विप्लव उत्पन्न करती है | एनर्जी हीलिंग थेरेपी पेन्डेन्ट शरीर में वात, पित्त ,कफ , हार्मोन्स , विटामिन्स , अम्ल ,खनिज पदार्थो की मात्रा को तुरंत संतुलित करता है, फलस्वरूप शरीर में संतुलन स्थापित हो जाता है |

6.शक्ति परीक्षण {Strength Demostration} -  दुर्वलता मौत की और शक्तिशाली होना जीवन की निशानी हैं | स्वामी विवेकानंद ने कहा था " हमें  ऐसे युवक चाहिए जिनमे लोहे सी अस्थियां,इस्पात के समान स्नायु तंत्र और जिनमे वज्र सा मन निवास करता हो | "  कमजोरी और बीमारी का आधार एक ही है | शारीरिक अंगो के ठीक से काम न करने से जीवन शक्ति उचित मात्रा में उत्पन्न नहीं हो पाती है | यही कमजोरी है | जब यह व्यवस्था अधिक उग्र रूप धारण कर लेती है , तो किसी विशेष अंग या समस्त शरीर में कोई उपद्रव खड़ा कर देती है , यही बीमारी है | अगर शरीर शक्तिशाली हो तो भयंकर से भयंकर रोग भी शरीर का कुछ नहीं बिगाड़ पाता है | एनर्जी हीलिंग थेरेपी पेन्डेन्ट शरीर को तुरंत शारीरिक, मानसिक और आंतरिक रूप से इतना सशक्त बना देता है| की सभी बीमारिया दूर से देखती है |
                                                                                           


7.सिगरेट और शराब पर परीक्षण - {Cigarette & Coffee Demonstration}  - सिगरेट और शराब  वैसे तो मनुष्य के जीवन को बर्बाद कर देते है , फिर भी जो लोग इनके आदि है , वो निम्न परीक्षण कर सकते है - सिगरेट और शराब के वर्तन को एनर्जी हीलिंग थेरेपी पेन्डेन्ट से को 20 मिनिट तक सटाकर रखे , इसके पश्चात दोनों के स्वाद में परिवर्तन आ जाता है, और इनके हानिकारक तत्व कुछ सीमा तक समाप्त हो जाते है , और कुछ समय तक ऐसा करने से इनकी आदत हमेशा के लिए छूट जाती है |

8.नीबू पर परीक्षण {Lemon Test} -नीबू के बीच से काटकर दो भाग कर ले, एक भाग पेन्डेन्ट से 20  फुट दूर रख दे , दूसरे भाग पर एनर्जी हीलिंग थेरेपी पेन्डेन्ट को रखे | 20  मिनिट पश्चात आप दोनों नीबू के टुकड़ो के स्वाद की जाँच करे | आप देखेगे की जिस नीबू के टुकड़े को पेन्डेन्ट पर रखा था ,उसके स्वाद में अंतर आ गया है, इसका मतलब यह है की उसकी रासायनिक संरचना में अंतर आ गया है , इसी प्रकार एनर्जी हीलिंग थेरेपी पेन्डेन्ट मानव शरीर की रासायनिक संरचना में परिवर्तन ला देता है | 

9. पानी पर परीक्षण {Water Test} - एनर्जी हीलिंग थेरेपी पेन्डेन्ट को रखे पानी में डाले या पानी के बर्तन से सटाकर  20  मिनिट  तक रखे ,पश्चात आप देखेगे की पानी की क्रिस्टलीय संरचना , 

स्वाद , पानी की चमक , और पानी के PH मान में परिवर्तन हो गया है   | अगर पानी की प्रवृति अम्लीय है तो वह छारीय हो जाती है | अम्लीन पदार्थ शरीर के लिए हानिकारक और छारीय पदार्थ लाभदायक होते है | इतना ही नहीं पानी से सभी प्रकार के बैक्टीरिया समाप्त हो जाते है |   


10. मोबाइल रेडिएशन टेस्ट  {Mobile Radiation Test }- वर्तमान में मोबाइल फ़ोन के अत्यधिक प्रयोग के चलते स्मृति लोप , एलर्जी , ब्लड प्रेशर , तथा कैंसर जैसी अनेक बीमारियो का खतरा बढ़ गया है | एनर्जी हीलिंग थेरेपी पेन्डेन्ट आपको सभी खतरों से बचाता
                                                                             
है, आप इसका परिक्षण निम्न लिखित तरीके से कर सकते है - किसी एक व्यक्ति के हाथ में पहले मोबाइल देकर  उसके हाथ को फैलाये , फिर उसे नीचे की ओर दबाये , आप देखेगे की उसका हाथ आसानी से नीचे की ओर चला जायेगा , फिर आप उसको एनर्जी हीलिंग थेरेपी पेन्डेन्ट पहनाये , इसके बाद  दोबारा यही प्रक्रिया दोहराये  आप देखेगे कि इस बार हाथ आसानी से नीचे की ओर नहीं जायेगा , क्योकि पेन्डेन्ट के पहनते ही शरीर अत्यधिक मजबूत हो जाता है और शरीर पर किसी भी प्रकार के विकिरण का प्रभाव निष्प्रभावी हो जाता है |


सावधानियां -
1 . जिन के शरीर के अंदर पेस मेकर, डीफिब्रियिलेटर या इंसुलिन पंप जैसे यंत्र लगे हो उनके लिए एनर्जी हीलिंग    थेरेपी पेन्डेन्ट का प्रयोग वर्जित है |
2 . गर्भवती माताये इस पेन्डेन्ट का उपयोग ना करे |

Physiological Health Benefits of Energy Healing Therapy Pendent
          Increases
         Decreases
 Normalizes
·                     Immunity
·                     Rejuvation
·                     Posture improves
·                     Endurance
·                     Energy level
·                     Muscular strength increase
·                    Cardiovascular efficiency
·                    Musculoskeletal flexibility
·                     Galvanic skin response
·                     Stable autonomic nervous system
·                     EEG - alpha waves
·                     Respiratory efficiency
·                     Breath-holding time
·                     Grip strength
·                     Steadiness
·                     Excretory function
·                     Reaction time
·                     Sensory and motor organs coordination
·                     Sleep
·                     strength and stamina
·                     Panic Attacks
·                     Dizziness
·                     Respiratory rate
·                     Pulse rate
·                     Blood pressure
·                     EMG activity decreases
·                     Headache
·                     Stomachahe
                                                 

                                                                                    
·                     Tridoshas
·                     Gastrointestinal function normalizes
·                     Endocrine function
·                     Autonomic nervous function
·                     Body weight
·                     Blood pressure normalize



Psychological Health Benefits of : Energy Healing Therapy Pendent
 Increases
 Decreases
 Normalizes
·                     Somatic and kinesthetic awareness
·                     Positive attitude
·                     Mood and feeling of subjective well-being
·                     Self-acceptance
·                     Social adjustment and social skills
·                     Concentration
·                     Memory
·                     Self attention
·                     Learning efficiency
·                     Self-actualization
·                     Depth perception
·                     Mind/Body neuro connection improves
·                     Balance improves
·                     Steadiness improves
·                     Will Power

·                     Stress
·                     Frustration
·                     Anxiety
·                     Depression
·                     Hostility
·                     Attention deficit hyperactivity disorder
·                     Hysteria
·                     Insomnia
·                     Fatigue
·                     premenstrual tension
·                     Examination Fever
·                     Mental exertion
·                     Difficulty in retention
·                     Frequent Mistakes
·                     Anger


·                     Trigunas
·                     Emotions
·                     Harmonal balance


Bio-Chemical Health Benefits of : Energy Healing Therapy Pendent
 Increases
 Decreases
 Normalizes
·                     HDL cholesterol
·                     Cholinesterase
·                     ATP
·                     Hemoglobin
·                     Lymphocyte count
·                     Thyroxin
·                     Vitamin C
·                     Total serum protein
·                     LDL cholesterol
·                     Human growth hormone (HGH)
·                     VLDL cholesterol
·                     Melatonin
·                     Glucose
·                     Sodium
·                     Total cholesterol
·                     Triglycerides
·                     Catecholamine
·                     Total W.B.C count
·                     Metabolism
·                     Vitamins
·                     Protein
·                     Minerals

 Health Benefits of Energy Healing Therapy Pendent:-

Physical,mental,Intellectual &
Spiritual development.
Spinal cord flexible.
Cure diseases.
Relaxed muscle tone.
Slow and static movements.
Low risk of injury.
Parasympathetic system dominates.
Sub-cortical regions of the brain dominate.
Low caloric consumption.
Effort is minimized with maximum relaxation.
Breathing is natural and synchronized.
Purely process-oriented.
Awareness is internal.
Toxin decreases.
No restriction of age & sex.
Positive attitude.


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ईमेल- energyhealingtherapy9@gmail.com