मालाबार नट जिसे वसाका या अडूसा भी कहा जाता है, आयुर्वेद में सांस की बीमारियों (विशेष रूप से ब्रोंकाइटिस में एक कफ निस्सारक के रूप में) में इसके लाभकारी प्रभावों के लिए जाना जाता है। इसके पत्ते, फूल, फल और जड़ों का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर सर्दी, खांसी, काली-खांसी, क्रोनिक ब्रोंकाइटिस और अस्थमा के इलाज के लिए किया जाता है। वसाका पूरे भारत में 1,300 मीटर की ऊंचाई पर होता है। तो चलिये जानें मालाबार नट अर्थात वसाका के अन्य लाभ व महत्व।
आम के पुराने बागों में कई प्रकार की झाड़ियां उगती हैं, जिनमें एक झाड़ी में सर्प के मुख की आकृति लिए एक पुष्प खिलता है। दरअसल, इस सफेद फूल वाले पौधे का नाम ‘मालाबार नट’ है। इसे हिंदी में ‘अडूसा’, ‘रूसा’ या ‘रुसाहा’ भी कहते हैं। वैज्ञानिकों ने इसे ‘जस्टिसिया अधाटोडा’ नाम दिया है। भारतीय धरती की यह वनस्पति कई औषधीय गुणों से भरी है। मलेरिया, ज्वर, क्षयरोग, मूत्र रोग और कफ की बीमारियों में इसकी जड़, पत्ते और फूलों का प्रयोग होता है। इस आदि-वनस्पति का मौजूदा मनुष्य से कितनी सदियों या फिर पीढ़ियों का नाता है, यह अध्ययन का विषय है।
उपचार :-
कफ को दूर करने के लिए मालाबार नट जिसे स्थानीय भाषा में अडूसा भी कहते हैं, की पत्तियों के रस को शहद में मिलाकर दिया जाता है। कम से कम 15 पत्तियों को पीस कर और इसमें दो चम्मच शहद मिलाकर रोगी को हर चार घंटे के अंतराल से दिया जाए तो खांसी में तेजी से आराम मिलता है। इसी नुस्खे से अस्थमा का इलाज भी किया जाता है।
आदिवासी टी.बी के मरीजों को मालाबार की पत्तियों का काढ़ा बनाकर 100 मिली रोज पीने की सलाह देते हैं। करीब 50 ग्राम पत्तियों को 200 मिली पानी में डालकर उबालने के बाद जब यह आधा बचे, तो रोगी को देना चाहिए।
मालाबार नट फेफड़ों में जमी कफ और गंदगी को बाहर निकालता है। इसी गुण के कारण इसे ब्रोंकाइटिस के इलाज का रामबाण माना जाता है। बाजार में बिकने वाली अधिकतर कफ की आयुर्वेदिक दवाइयों में मालाबार नट का प्रयोग किया जाता है।
दमा के रोगी यदि अनंतमूल की जड़ों और मालाबार के पत्तियों की समान मात्रा (3-3 ग्राम) लेकर दूध में उबालकर पिएं तो लाभ होता है। ऐसा कम से कम एक हफ्ते तक किया जाना चाहिये।
मालाबार की पत्तियों में कुछ ऐसे एलक्लॉइड होते हैं जिनके कारण कीड़ों और सूक्ष्मजीवियों का आक्रमण इस पौधे पर नहीं होता है। आदिवासी कान में होने वाले संक्रमण को ठीक करने के लिए मालाबार की पत्तियों को पीसकर तिल के तेल में उबालते हैं और इस मिश्रण को हल्का गुनगुना होने पर छानकर कुछ बूंदें कान में डालते हैं। इससे कान के दर्द में काफी राहत मिलती है।
लंबे समय से चली आ रही खांसी, सांस की समस्या और कुकुर खांसी जैसी समस्या के निवारण के लिए अडूसा की पत्तियो और अदरक के रस की सामान मात्रा (5 मिली) दिन में तीन बार एक माह तक लगातार दिया जाना चाहिए।
मालाबार नट के उपयोग से पहले एक बार डॉक्टर से सलाह जरूर लें। साथ ही गर्भावस्था के समय इसका प्रयोग नहीं करना चाहिये।
मालाबार नट के उपयोग से पहले एक बार डॉक्टर से सलाह जरूर लें। साथ ही गर्भावस्था के समय इसका प्रयोग नहीं करना चाहिये।
No comments:
Post a Comment